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प्रवचन-४७
२६७ हैं, यदि अभी तक विशेष गृहस्थधर्म का पालन करने की भूमिका प्राप्त नहीं की है, मैथुनक्रिया का त्याग करने की क्षमता प्राप्त नहीं की है, तो आपका इन्द्रिय विजय वहाँ तक ही सीमित रहेगा कि आप परस्त्री की इच्छा न करें, कुमारिका की इच्छा न करें। आपका संबंध स्वस्त्री से ही रहना चाहिए।
वैसे महिला के लिए परपुरुष वर्ण्य होना चाहिए, अपरिणीत युवक भी वर्म्य होना चाहिए। इनकी इच्छा भी नहीं करनी चाहिए। अपने ही विवाहित पुरुष के साथ भोग-संभोग होना चाहिए, दूसरों के साथ नहीं।
भोग-संभोग का सुख आप लोगों को यदि चाहिए, आप सर्वथा मैथुन का त्याग नहीं कर सकते हो, आप भोग-संभोग करें, परन्तु अपने ही विवाहित व्यक्ति के साथ ही आपका सम्बन्ध हो। तो आप इन्द्रियविजेता हैं। आपकी गृहस्थोचित भूमिका पर आप इन्द्रियविजेता हो।
सभा में से : इन्द्रियविजेता बनने के लिए इन्द्रियों का दमन नहीं करें, परन्तु इन्द्रियों को विषयभोग करने दें....तो क्या गलत है? आजकल कुछ फिलोसॉफर ऐसी भी बात करते हैं!
महाराजश्री : यदि विषयभोग करने से इन्द्रियविजेता बनना संभव होता तो आप लोग कभी के विजेता बन गए होते! कितने वर्षों से विषयभोग करते हो? आप लोगों से पहले....वेश्यायें और वेश्यागामी पुरुष इन्द्रियविजेता शीघ्र बन जाने चाहिए। कितनी वेश्यायें कामविजेता बनीं? कितने वेश्यागामी पुरुष कामविजेता बने? कुछ अपनी बुद्धि से सोचो। बोलनेवाले तो बोलते रहेंगे। अपने देश में वाणी स्वातंत्र्य है न? जिसको जो ऊंचे यह बोल सकते हैं। सुनने वालों का दिमाग ठिकाने होना चाहिए। कुछ लोगों को उलटी बातें करने की आदत पड़ी हुई है। जब की तीर्थंकरों ने, अवतारों ने, ऋषि-मुनियों ने इन्द्रियों के दमन और शमन की बात की है, तब ये 'इमीटेशन फिलॉसफर' उलटी ही बात करते हैं। दमन और शमन नहीं करने की बात करते हैं। और, उलटी बातें करनेवालों की ओर लोगों का ध्यान जल्दी खिंच जाता है।
जीवों में कामवृत्ति वैसे भी प्रबल होती है। जब ऐसे लोगों को कामवृत्ति और कामप्रवृत्ति की अनिष्टता का ज्ञान नहीं होता है, कामवृत्ति के भयानक परिणामों का ज्ञान नहीं होता है, तब वे लोग ऐसे उलटी बातें करनेवालों के चक्कर में सुविधायें चाहिए वे सुविधाएं जहाँ भी मिल जाती हो, निर्भयता से जहाँ भोग-संभोग हो सकता हो, भले ही वह वेश्यागृह हो या आश्रम हो, लोग चले जायेंगे! नाम 'आश्रम' का और काम वेश्यागृह का! आश्रम के नाम पर
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