Book Title: Dhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 280
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-४७ २७२ मा. आंतरिकशत्रुओं के साथ युद्ध करते रहो....तुम अवश्य विजयी बनोगे। विजयी बनकर पूर्णता को प्राप्त करोगे....तुम पूर्ण बन जाओगे! . सिनेमा का मनोरंजन छोड़ दो! सिनेमा देखने से असंख्य मानसिक विकृतियाँ पैदा हो जाती हैं। . वैसा मत देखो....मत पढ़ो....मत सुनो जिससे कि वासना को उत्तेजना मिले। कामशशु पर विजय पाने का यही एक सरल उपाय है। • वस्त्र परिधान में यह ध्यान रखो कि स्वयं या अन्य की वासना भड़के नहीं! तुम्हारी वेशभूषा वैसी होनी चाहिए कि देखने वालों के दिल और आँखों में वासना न उभरे...न ही विकृति की चिनगारी भड़के। प्रवचन : ४८ परम कृपानिधि महान् श्रुतधर आचार्य श्री हरिभद्रसूरिजी, स्वरचित 'धर्मबिन्दु' ग्रन्थ में गृहस्थ जीवन के सामान्य धर्म बता रहे हैं। सामान्य धर्म यानी सभी गृहस्थों के लिए 'कॉमन रिलीजन'। जिस किसी गृहस्थ को, गृहस्थ जीवन जीते हुए मानवता को उजागर करना है, उन सभी के लिए यह सामान्य धर्म उपादेय है। मानवता को सदैव उजागर करने के लिए मनुष्य को अपने अन्तरंग शत्रुओं की पहचान कर लेनी चाहिए और उन शत्रुओं का निग्रह करते हुए इन्द्रियसंयम करना चाहिए | परन्तु परिस्थिति और ही है! अन्तरंग शत्रुओं की शरणागति स्वीकार कर ली गई है! आन्तरिक शत्रुओं के सहारे जीवन जीने का निर्णय कर लिया गया है। सही बात है न? काम, क्रोध, लोभ, मान, मद और हर्षइनके बिना जीवन जीने का विचार भी कभी किया है? कभी अपने आपको पूछा है कि___ 'हे आत्मन, तू कामविकारों की तीव्रता का कब त्याग करेगा? तू क्रोध की तीव्र वासना से कब मुक्त होगा? तू लोभ की प्रचंड आग में कब तक जलता रहेगा? तू अभिमान में पकड़ा हुआ कब तक रहेगा? विविध प्रकार के मदों में कब तक उन्मादी बना हुआ रहेगा? दुर्व्यसनों में कब तक हर्षोन्मत्त बना हुआ For Private And Personal Use Only

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