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प्रवचन-४६
___ २५८ संसार-त्याग की बात सुनी....तब हजारों स्त्री-पुरुष रोते-बिलखते वहाँ पर आये कि जहाँ श्रीराम वगैरह बैठे थे। प्रजाजनों ने भी कुंभकर्ण वगैरह को संसार-त्याग नहीं करने की प्रार्थना की, परन्तु इन्द्रजित ने प्रजा को, संसार की निःसारता समझायी, मानवजीवन की महत्ता समझायी, मोक्षसुख की अविनाशिता बतायी। प्रजा को आश्वस्त किया।
लंका शोकसागर में डूब गई थी। उस समय लंका के कुसुमायुध उद्यान में महामुनि अप्रमेयबल को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई थी। जब भी किसी महामुनि को केवलज्ञान प्रकट होता है तब देवलोक के देव पृथ्वी पर आते हैं, दुंदुभि बजाकर आनन्द की अभिव्यक्ति करते हैं। कुसुमायुध उद्यान में हजारों देव आये हैं और दुंदुभि बजा रहे हैं।
रात्रि, पद्मसरोवर के किनारे पर सभी ने व्यतीत की। प्रभात में उद्यानपालक ने आकर श्री रामचन्द्रजी आदि को समाचार दिया कि महामुनि को केवलज्ञान प्रगट हुआ है और देवों ने महोत्सव मनाया है। श्री रामचन्द्रजी, रावण के परिवार के साथ कुसुमायुध उद्यान में गये। ___महामुनि अप्रमेयबल को तीन प्रदक्षिणा देकर भावपूर्वक वंदना की | महामुनि ने वहाँ धर्मोपदेश दिया । इन्द्रजित वगैरह की वैराग्य-भावना अति प्रबल बनी। महामुनि अपने ज्ञान प्रकाश में इन्द्रजित-मेघवाहन के पूर्वजन्मों को देखा.... कह सुनाया.... दोनों भाई खड़े हो गये और महामुनि को कहा : 'गुरुदेव, हम सभी संसार से विरक्त बने हैं, हमें चारित्र्यधर्म देने की कृपा करें, भवसागर में आप हमारी जीवननैया के नियामक बनें.... हमें तारने की कृपा करें।'
श्रीरामचन्द्रजी खड़े हो गये....इन्द्रजित को अपने बाहुपाश में जकड़ लिया.... अश्रुपूर्ण आँखों से और गद्गद् स्वर से, उन्होंने इन्द्रजित को संन्यास लेने से रोकने का प्रयास किया। परन्तु इन्द्रजित वगैरह संपूर्ण विरक्त बने हुए थे। उनकी ज्ञानदृष्टि खुल गई थी। ___कुंभकर्ण, इन्द्रजित और मेघवाहन ने श्रमण जीवन अंगीकार कर लिया। मंदोदरी वगैरह हजारों रानियाँ साध्वी बन गईं! कैसा गजब परिवर्तन! कैसा अद्भुत त्याग! श्रीरामचन्द्रजी वगैरह ने नूतन मुनिवरों को वंदना की, स्तुति की। विभीषण ने श्रीराम से कहा : 'हे पूज्य, अब आप लंका में पधारें और देवी सीता को दर्शन देकर उनका चित्त प्रसन्न करें।'
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