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प्रवचन-४६ कर्तव्यपालन का मूल्य : अमूल्य :
अचित कर्तव्यों का पालन करने के लिए मनुष्य में कितना धैर्य चाहिए? यदि सीताजी से मिलने की अधीरता होती तो श्रीराम अपने उचित कर्तव्यों का पालन नहीं कर सकते। रावण के परिवार को मोक्षमार्ग पर चलने की प्रेरणा प्राप्त नहीं होती....और इतिहास ही बदल जाता! औचित्यपालन, मानवता का अविभाज्य अंग है | गृहस्थजीवन हो या साधुजीवन हो, औचित्यपालन आवश्यक होता है। __ श्रेष्ठ पुरुषों के जीवन में उच्च कोटि का औचित्यपालन देखकर, हमें उनकी प्रशंसा करनी चाहिए। कर्तव्यपालन के प्रति यदि आपका लगाव होगा, कर्तव्यपालन का मूल्यांकन यदि आप करते होंगे, तो ही आप उस गुण के प्रशंसक बन सकोगे। दूसरे जीवों के प्रति अपने कर्तव्यों का बोध होना चाहिए। कर्तव्य की भीतरी इच्छा होनी चाहिए।
सभा में से : आजकल तो कर्तव्यपालन की भावना ही नष्ट हो गई है। सबको अपने कर्तव्यों से बचना है!
महाराजश्री : उचित कर्तव्यों का पालन करने के लिए बहुत सी योग्यताएँ चाहिए। स्वार्थी, आलसी और विषयलोलुपी जीवात्मा कर्तव्यपालन कर ही नहीं सकता। आज ये तीन बातें जीवों में विशेष रूप से प्रविष्ट हो गई हैं। स्वार्थ की कोई सीमा नहीं रही है। आलस्य अंग-अंग में भरा पड़ा है और विषयलोलुपता का विस्तार होता ही जा रहा है। ऐसी परिस्थिति में कर्तव्यपालन होना असंभव सा ही है। मेरा कहना तो यह है कि भले कर्तव्यपालन न हो, पर कर्तव्यपालन करनेवाले शिष्ट पुरुषों की प्रशंसा तो होनी चाहिए न? करते हो प्रशंसा? प्रशंसा करो तो भी बहुत है। ___ जो पुरुष निन्दनीय कार्य नहीं करते हैं, क्या उनकी प्रशंसा करते हो? प्रशंसा तो नहीं ऊपर से उपहास करते हो! जुआ खेलनेवाले जुआ नहीं खेलनेवाले की खिल्ली उड़ाते हैं! शराब पीनेवाले शराब नहीं पीनेवालों पर हँसते हैं! बीभत्स और मर्यादाहीन वेश पहननेवाले, जो वैसी वैशभूषा नहीं करते उनकी हँसी उड़ाते हैं। अभक्ष्य खाने वाले, अभक्ष्यभक्षण नहीं करने वालों की निन्दा करते हैं। दूसरों का दुःख दूर करने के लिए स्वयं दुःख सहन करनेवालों की आलोचना वे लोग करते हैं कि जो दूसरों के दुःखों के प्रति हँसते रहते हैं!
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