Book Title: Dhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 264
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-४६ રદ્દ श्री राम का औचित्य : __ श्री राम ने अपने उत्तरीय वस्त्र से इन्द्रजित-मेघवाहन के आँस पोंछे । दूसरी ओर, रावण के मृतदेह की अन्तिम क्रिया की सभी तैयारी हो गई थी। रावण की देह को सुगंधयुक्त जल से स्नान कराया गया। श्रेष्ठ वस्त्र पहनाये गये | चन्दन की चिता पर पार्थिव देह को रखा गया....और इन्द्रजित ने चिता में अग्नि प्रज्वलित की। श्री राम-लक्ष्मण वगैरह वहाँ खड़े रहे। जब चिता शान्त हुई, श्रीराम आदि पद्मसरोवर में स्नान करने गये। कुंभकर्ण, विभीषण, इन्द्रजित, मेघवाहन, मंदोदरी वगैरह ने भी पद्मसरोवर में स्नान किया। स्नानादि से निवृत्त होकर सब, श्री राम के पास इकट्ठे हुए। श्रीराम ने, लंका के राजपरिवार को मधुर वाणी से संबोधित करते हुए कहा : __ 'हे वीर पुरुषो, आप पूर्ववत् अपना राज्य सम्हालो, प्रजा का पालन करो, हमें आपकी राज्य संपत्ति का कोई प्रयोजन नहीं है | आपका मैं कुशल चाहता ___ श्री राम के वचन सुनकर कुंभकर्ण आदि की आँखें अश्रुपूर्ण हो गईं। सभी गद्गद् हो गये। सबके मन में श्रीराम के प्रति अपार स्नेह प्रकट हुआ। ___ श्री रामचन्द्रजी का लोकाचार-पालन कैसा था? शत्रु की मृत्यु होने पर शत्रु परिवार के प्रति, शत्रु के राज्य के प्रति, मृत शत्रुदेह के प्रति श्री राम ने कैसा उचित व्यवहार किया? रावण की मौत के बाद एक शब्द भी अवर्णवाद का, श्री राम के मुँह से नहीं निकला। वैसा उपदेश भी नहीं दिया कि कुंभकर्ण आदि के दिल में चोट लगे! 'देखो, रावण की मौत परस्त्री के कारण हुई, तुम लोग इस घटना से बोध लेना, कभी भी परस्त्री की इच्छा नहीं करना....' इस प्रकार का उपदेश नहीं दिया । मृत्यु के बाद, मृत व्यक्ति के परिवार के समक्ष, स्नेही-स्वजनों के समक्ष कैसे शब्दों में आश्वासन देना चाहिए, इसमें विवेक चाहिए। किस समय, किस व्यक्ति को, कैसे शब्दों में उपदेश देना, आश्वासन देना, यह गहरी सूझ की बात है। श्री राम ने इन्द्रजित आदि की ओर कैसी स्नेहपूर्ण सहानुभूति व्यक्त की? अंतिम संस्कार के समय वे उपस्थित रहे। सीताजी के पास जाने की कोई जल्दबाजी नहीं की। लक्ष्मणजी को भी सीताजी के पास नहीं भेजा। यह औचित्यपालन था। लंका पर विजय प्राप्त कर ली थी श्री राम ने, फिर भी उन्होंने उसी समय For Private And Personal Use Only


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