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प्रवचन-४१ उन्होंने आसक्ति को और आसक्ति के विषयों को छोड़ने का उपदेश दिया । आसक्ति की घोर निन्दा की, आसक्ति के विषयों की भी असारता बतायी। अनासक्त मनुष्य बिना कष्ट के, त्याग कर सकता है। शिष्टजनों का उपहास नहीं वरन् प्रशंसा करो :
गृहस्थजीवन का चौथा सामान्य धर्म बताते हुए ग्रन्थकार महर्षि एक बुरी आदत का त्याग करने को कह रहे हैं। सज्जन पुरुषों की निन्दा का त्याग करने को कहते हैं। शिष्ट पुरुषों का उपहास मत करो। शिष्टपुरुषों की प्रशंसा करो । परन्तु आजकल तो शिष्ट पुरुषों की ही ज्यादा निन्दा हो रही है। जो किसी की निन्दा नहीं करते, आलोचना प्रत्यालोचना नहीं करते, उनकी ही निन्दा। जो शिष्ट पुरुष होते हैं वे किसी की भी निन्दा नहीं करते। निन्दात्याग, शिष्ट पुरुषों का एक लक्षण है।
'यह कितना अच्छा पुरुष है....कभी किसी की निन्दा नहीं करता है....।' इस प्रकार कभी प्रशंसा करते हो आप लोग? नहीं, चूंकि 'निन्दा करना बहुत बड़ा पाप है-'यह सत्य आपके हृदय में स्थिर नहीं हुआ है। निन्दा का भी रस है। मीठा रस है। जिसको यह रस पसन्द आ गया, छूटना मुश्किल होता है। 'निन्दा करना पाप है-'यह बात उसको पसन्द नहीं आयेगी। निन्दा करने वाले लोग उसको पसन्द आयेंगे। निन्दा नहीं करने वालों के साथ बैठना-उठना पसन्द नहीं आयेगा। निन्दा करने वालों का संग ही पसंद आयेगा। दो-चार लोग मिलकर निन्दारस का पान करते हैं तो उनको बड़ा मजा आता है।
'परनिन्दा करना बड़ा पाप है, परनिन्दा नहीं करनी चाहिए।' यह बात जो लोग मानते हैं, वे लोग ही निन्दा नहीं करने वालों की प्रशंसा कर पाएंगे।
'सर्वत्र निन्दासन्त्याग :'यह एक विशेषता होती है शिष्ट पुरुषों की। वे कहीं पर भी निन्दा नहीं करते । बाहर भी नहीं करते, घर में भी नहीं करते। सार्वजनिक रूप से नहीं करते वैसे गुप्तरूप से भी नहीं करते! शब्दों में नहीं करते, विचारों में नहीं करते। निन्दा का सम्यक त्याग तो ही हो सकता है। श्रीपाल चरित्र में मयणासुन्दरी का व्यक्तित्व ऐसा पाया जाता है। कुष्ठरोगी युवक के साथ शादी कराने वाले पिता की कभी भी मयणासुन्दरी ने निन्दा नहीं की! अपने पति के सामने भी अपने पिता की निन्दा नहीं की! मयणासुन्दरी का यह व्यक्तित्व आपको पसन्द आता है? इस दृष्टि से मयणा की आप प्रशंसा करते हो?
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