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प्रवचन- ४५
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आया। परन्तु खर विद्याधर तो लक्ष्मणजी के द्वारा युद्ध में मारा गया था। सुग्रीव के दिमाग में अचानक विचार कौंधा ! श्री राम-लक्ष्मण ने खर विद्याधर को मार कर, विराध को पाताल लंका का राजा बनाया है.... सुना है रामलक्ष्मण जैसे पराक्रमी हैं, वैसे दयालु भी हैं! यदि वे यहाँ पधारें तो मेरा संकट टल सकता है। सुग्रीव ने तुरन्त ही सेनापति को बुलवाया और श्रीराम-लक्ष्मण के नाम सन्देश देकर, उसको पाताल लंका भेजा ।
श्री राम-लक्ष्मण सीताजी के अपहरण हो जाने के बाद, विराध के साथ पाताल लंका गये थे और वहीं पर रुके थे । विराध सीताजी की खोज करवा रहा था, परन्तु सीताजी का पता नहीं मिल पा रहा था ।
सुग्रीव का सेनापति पाताल लंका पहुँचा । उसने विराध को सुग्रीव का संदेश दिया, विराध ने रामचन्द्रजी को सुग्रीव की परिस्थिति कह सुनायी । श्री राम ने किष्किन्धा जाने की अनुमति प्रदर्शित की। महापुरुषों का यह स्वभाव होता है.... जब किसी का दुःख देखते हैं, किसी की आपत्ति देखते हैं, उसकी सहायता करने तत्पर हो जाते हैं । उस समय वे अपना दुःख भूल जाते हैं। ‘परोपकार परायणता' का संगीत महापुरुषों के श्वासोच्छ्वास में सुनायी पड़ता है । सुग्रीव का कोई परिचय श्री राम को नहीं था, विराध ने सुग्रीव का परिचय दिया, उसकी आपत्ति कह सुनायी और श्री राम वानरद्वीप पर जाने को तैयार हो गये।
सेनापति किष्किन्धा पहुँचा और सुग्रीव को समाचार दिया । सुग्रीव हर्ष से गद्गद् हो गया। शीघ्र विमान लेकर पाताल लंका पहुँचा और श्री राम के चरणों में नमन किया । जरा भी विलंब किये बिना सुग्रीव के साथ श्रीरामलक्ष्मण विमान में बैठ गये । विराध भी साथ चला। रास्ते में विराध ने सुग्रीव को सीताजी के अपहरण की बात कह सुनायी और सीताजी की खोज करने की बात कही। श्री राम ने विराध को वापस पाताल लंका भेज दिया ।
विमान किष्किन्धा के बाह्य प्रदेश में उतरा । श्रीराम ने प्रत्यक्ष दो सुग्रीवों को देखा! दोनों अपने आपको सच्चा सुग्रीव बताने लगे। श्रीराम ने क्षणभर सोचा और तुरन्त अपना वज्रावर्त धनुष उठाया । धनुष का ऐसा टंकार हुआ कि सारी किष्किन्धा स्तब्ध रह गई...! साहसगति की 'प्रतारिणी' विद्या टिक नहीं सकी । विद्याशक्ति नष्ट हो गई.... साहसगति की पोल खुल गई। असली-नकली सुग्रीव का भेद खुल गया.....। श्रीराम अत्यंत रोषायमान हुए और तीर मार कर साहसगति को यमसदन में पहुँचा दिया।
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