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प्रवचन-४५
२५२ पाखंड़ फैल रहे हैं.... बाह्य आडंबर.... अखबारों के आकर्षक विज्ञापन आदि से भ्रमित मत हो जाना। सामान्य धर्मों की घोर उपेक्षा के साथ यह सब हो रहा है। मानव मानव नहीं बन पाता, योगी कैसे बनेगा? ध्यानी कैसे बनेगा? पहले मानव बनना आवश्यक है। जीवन व्यवहार को सुचारु बनाना आवश्यक है। __ सभा में से : यह क्रमिक आत्मविकास की प्रक्रिया से बढ़कर 'अक्रम विज्ञान' की बात एक भगवानश्री कर रहे हैं....कहते हैं कि सीधे मोक्ष में पहुँचने के लिए 'अक्रमविज्ञान' श्रेष्ठ है! ___ महाराजश्री : ऐसी बात करने वाले भगवान से पूछो कि अब तक कितनों को मोक्ष में पहुँचाया? आत्मविकास की क्रमिक साधना का निषेध करने वाले वे भगवान् शरीरस्वास्थ्य में क्रम का पालन करते हैं! दैनिक कार्यक्रम में क्रम का पालन करते हैं! देशभ्रमण में गाँव नगरों का क्रम बनाते हैं। संसार की सभी बातों में क्रम का पालन और मोक्ष की साधना में अक्रम! वे भगवान् अपने पास आने वाले स्त्री-पुरुषों को अपना चरणस्पर्श करवाते हैं! हैं वे एक सामान्य गृहस्थ | गुजरात के पटेल हैं। बोलते हैं तो गालियाँ भी बक देते हैं। उनकी किताब में भी गालियाँ पढ़ने को मिल जाएंगी।
धर्मग्रन्थों में कुछ ऐसे व्यक्तियों के जीवन चरित्र आते हैं कि जो डाकू थे और साधु बन गये। जिन्होंने वर्तमान जीवन में कोई क्रमिक धर्मआराधना नहीं की थी और कुछ निमित्त मिलने पर केवलज्ञानी बन गये | बस, अक्रमविज्ञान की बातें करनेवालों को यह शास्त्रीय प्रमाण मिल गया। उन्होंने पूर्व जन्मों की आराधना का विचार नहीं किया। जन्म-जन्मान्तर की आत्मविकास की यात्रा को नहीं देखा.... मात्र वर्तमान काल की पूर्णता को देखा और उसको राजमार्ग मान लिया। जटाशंकर का सफेद झूठ :
एक बार जटाशंकर रास्ते से जा रहा था, ध्यान नहीं रहा और ठोकर लग गई... जमीन में से पत्थर निकल पड़ा....। जटाशंकर को बड़ी पीड़ा होने से बैठ गया। उसने उस पत्थर को देखा और पत्थर निकलने से जमीन में जो खड्डा पड़ गया था उस खड्डे में देखा.... कुछ पीला पीला दिखायी दिया। आस-पास देख लिया 'कोई मुझे देखता तो नहीं है न।' और हाथ डालकर उसने पीली पीली वस्तु बाहर निकाली। सोने का टुकडा था। तुरंत जेब में
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