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प्रवचन-४५ टुकडा डालकर वह घर पहुंचा। बस अब क्या पूछना। धन कमाने का अक्रमविज्ञान मिल गया उसको । उसने सोचा : धन कमाने के लिये १०/१५ साल पढ़ाई करना, फिर सर्विस करना.... दुकान खोलना.... यह सारा क्रम बेकार है। धन कमाने के लिए सीधा रास्ता है ठोकर खाना | जमीन में गड़े हुए पत्थर से ठोकर खाओ जमीन में से सोना मिलेगा।' बस, फिर तो जटाशंकर सभी जगह धन कमाने का अक्रमविज्ञान बताता चला। अपना अनुभव भी बताने लगा : 'मैंने ठोकर खायी और देखो, यह सोना मुझे मिला ।'
कुछ मूर्ख लोग मिल गये जटाशंकर को! जिनको बिना मेहनत और बिना विलंब श्रीमन्त बन जाना था! ठोकरें खायीं परन्तु सोना नहीं मिला.... तो पहुँचे जटाशंकर के पास | जटाशंकर ने कहा : 'तुमने गलत जगह पर ठोकर खायी होगी इसलिए धन नहीं मिला, मैं बताऊँ उस जगह ठोकर खाना..... अवश्य मिलेगा सोना।'
जटाशंकर ने अपनी बात को सिद्ध करने को योजना बनाई। कुछ लालची लोग भी उसके भक्त तो बन ही गये थे.....। एक भक्त के द्वारा जटाशंकर ने निश्चित स्थानों पर थोड़ी थोड़ी सोनामुहरें रखवा दीं, उस पर पत्थर रखवा दिये, और नये नये भक्तों को उस निश्चित स्थान पर ठोकर खाने का चमत्कारिक निर्देश देने लगा! भक्तों को सोनामुहरें मिलने लगीं! बस, जटाशंकर का काम बन गया । ज्यादा धन पाने की लालसा में भक्त लोग थोड़ा-थोड़ा धन जटाशंकर को देने लगे! थोड़ा-थोड़ा करते उसके पास पाँच लाख रूपये बन गये। अक्रमविज्ञान या चक्रमविज्ञान?
परन्तु जब कुछ भक्तों को ज्यादा धन नहीं मिलने लगा, वे संशय से 'भगवान् जटाशंकर' को देखने लगे.... तब जटाशंकर घबराया! उसने विदेश भाग जाने का सोचा और एक दिन वह भारत से उड़ गया! आपको नहीं मिलेगा! मोक्ष पाने का अक्रम विज्ञान बतानेवाले भगवान भारत में भी मिलेंगे! अभी तो उनकी लीला चल रही है.... कल क्या होगा.... वह तो केवलज्ञानी जाने! ___ 'मानवीय गुणों के बिना भी आत्मा का मोक्ष हो सकता है, ऐसी बातें करनेवालों पर आप लोग विश्वास कैसे कर सकते हो? वास्तव में देखा जाय तो मोक्ष की बात तो एक परदा मात्र होती है, भीतर में होती है वैषयिक
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