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प्रवचन-४५
२४५ मैं हूँ, मेरे पहले यदि कोई सुग्रीव नगर में गया है तो वह नकली है।' नगररक्षक द्विधा में पड़ गये। दोनों सुग्रीव एक समान थे! असली और नकली का भेद करना, उनके लिए मुश्किल काम था। द्वाररक्षकों ने सुग्रीव को नगर में प्रवेश नहीं करने दिया और शीघ्र ही राजमहल में जाकर युवराज चन्द्ररश्मि को परिस्थिति से परिचित किया। मंत्रीमंडल को भी सावधान कर दिया।
किष्किन्धा में दो सुग्रीव! सब के सामने विकट प्रश्न पैदा हो गया । युवराज चन्द्ररश्मि ने सोचा : कौन असली सुग्रीव है और कौन नकली सुग्रीव है, इसका निर्णय करना एक कार्य है, दूसरा महत्त्वपूर्ण कार्य है किसी भी सुग्रीव को अन्तःपुर में प्रवेश करने से रोकना! तीसरा काम है असली-नकली सुग्रीव की पहचान कर सके, ऐसे ज्ञानी पुरुष की खोज करना। अन्तःपुर की सुरक्षा प्रमुख कर्तव्य था :
उसने इन कार्यों में सर्वप्रथम महत्त्व दिया अन्तःपुर की रक्षा करने का । उसने सेनापति से कहा : आप नगर के द्वार पर जाकर उस सुग्रीव को वहीं पर रोको | मैं अन्तःपुर के द्वार पर खड़ा रहूँगा, किसी भी सुग्रीव को अन्तःपुर में प्रवेश नहीं करने दूंगा। मंत्रीमंडल को उसने कहा : आप ऐसा उपाय सोचो कि शीघ्र असली-नकली सुग्रीव का भेद खुल जाये!
देखो, चन्द्ररश्मि की कार्यक्षमता! सभी कार्यों में प्रधान कार्य उसने देखा अन्तःपुर की रक्षा का और वह कार्य किसी दूसरे को नहीं सौंपा, वह स्वयं उस कार्य को करने के लिए चल पड़ा।
चन्द्ररश्मि, वानरद्वीप का सर्वश्रेष्ठ योद्धा था, अजेय पराक्रमी पुरुष था। वीर वाली का वह पुत्र था। सुग्रीवने भतीजे को युवराज का पद दिया था। चन्द्ररश्मि शस्त्रसज्ज बनकर शीघ्र ही अन्तःपुर के द्वार पर पहुँच गया और अन्तःपुर के रक्षकों को सावधान कर दिया । सैनिकों ने अन्तःपुर को चारों ओर से घेर लिया। नकली सुग्रीव इस नयी आफत को देखकर बौखला उठा।
इतने में महारानी तारा अन्तःपुर के द्वार पर आयी, उसने द्वार पर शस्त्रसज्ज चन्द्ररश्मि को खड़ा देखा....! उसको आश्चर्य हुआ, पूछा : 'चन्द्र! बेटा तू यहाँ और शस्त्रसज्ज होकर? क्या बात है?' चन्द्ररश्मि ने तारा रानी को परिस्थिति बतायी और कहा : आप अन्त:पुर के गुप्त कक्ष में चली जाइये । मैं यहाँ खड़ा हूँ, आप निश्चित रहें।' तारा रानी असमंजस की स्थिति में अन्तःपुर के गुप्त कक्ष में चली गई।
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