Book Title: Dhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

View full book text
Previous | Next

Page 252
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-४५ २४४ __ ताकत से तो सुग्रीव का सामना करना उसके बस में नहीं था। साहसगति ने विद्यासिद्धि करने का निर्णय किया | वह हिमवंतगिरि की गुफा में जा बैठा । उसने 'प्रतारिणी' विद्या की साधना शुरू की। कुछ समय की साधना के बाद विद्या सिद्ध हुई। वह खुशी के मारे झूम उठा । अज्ञानी जीव जब कोई एकाध कार्य सिद्ध हो जाता है तब मान लेता है कि 'अब मेरे सभी कार्य सिद्ध हो गये!' उसको कर्मों की कुटिलता का भान नहीं होता है....कि नैया किनारे पर भी डूब सकती है! 'प्रतारिणी' विद्या के सहारे तारा को प्राप्त करना, साहसगति को आसान लगा....वह वानरद्वीप पर जा पहुंचा। __उसने सुग्रीव का रूप कर लिया। रूप परावर्तन करने की विद्या उसने पा ली थी। वह राजधानी किष्किन्धा के उद्यान में जा पहुँचा। उसने देखा कि सुग्रीव बाह्य उद्यान में क्रीड़ा करने गया है, इस अवसर का उसने लाभ उठाया। उसने नगर में प्रवेश कर दिया। नगर-रक्षकों की दृष्टि में वह सुग्रीव ही था! वह सीधा राजमहल में पहुँचा। राजमहल के रक्षकों ने भी सुग्रीव को प्रणाम किया और नतमस्तक होकर मार्ग दे दिया । नकली सुग्रीव ने तो सीधा अन्तःपुर का रास्ता लिया कि जहाँ तारा रानी थी! अन्तःपुर के रक्षकों ने नकली सुग्रीव को अचानक बेसमय अन्तःपुर के द्वार पर देखा....उनको आश्चर्य हुआ....उन्होंने प्रणाम करके कहा : अभी हम महारानी को आपके पधारने की सूचना देकर आते हैं आप यहीं प्रतीक्षा करें! रक्षकों ने अन्तःपुर में जाकर तारा रानी से कहा : 'महाराजा द्वार पर पधारे हैं!' तारा रानी स्नान करने जा रही थी....उसको आश्चर्य हुआ, परन्तु उसने कहा : महाराजा को कहो कि मैं स्नानादि से निवृत्त होकर, द्वार पर स्वागत करने आती हूँ| असली नकली सुग्रीव : __ रक्षकों ने नकली सुग्रीव को कहा : 'महारानी स्नानादि से निवृत्त होकर स्वयं स्वागत के लिए द्वार पर आ रही हैं, आप यहाँ प्रतीक्षा करने की कृपा करें।' नकली सुग्रीव के मन में तारा से मिलने की तीव्र उत्कंठा थी परन्तु क्या करें? राजमहल की रीत-रसमों का आदर करना आवश्यक था! वह अन्तःपुर के द्वार पर टहलने लगा। ___ उधर नगर के द्वार पर बड़ी गड़बड़ी मच गई। सच्चा सुग्रीव बाह्य उद्यान में क्रीड़ा करके वापस लौटा तो नगर के द्वार पर नगररक्षकों ने उसको रोका। 'महाराजा सुग्रीव तो कभी के नगर में पधार गये हैं, आप दूसरे सुग्रीव कहाँ से पधार गये?' सुग्रीव को बड़ा आश्चर्य हुआ....। उसने कहा : 'सच्चा सुग्रीव For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291