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प्रवचन-४४
घर में भी उचित स्थान का खयाल रखना आवश्यक होता है। पत्नी को उपालंभ देना है, बच्चों की उपस्थिति में नहीं देना चाहिए। जब घर में बच्चे नहीं हो तब जो उपालंभ देना हो, दे सकते हो। वह भी, सारे पड़ोसी इकट्ठे हो जायें वैसे शब्दों में नहीं! घर की चार दीवारी के बाहर आपकी आवाज नहीं जानी चाहिए। युवान पुत्र पुत्री को गम्भीर बात कहनी है तो एकान्त में कहो। दूसरों के सामने, मित्रों के बीच या घरवालों के बीच में उनको उपालंभ मत दिया करो। किसी को उपालंभ देना, एक क्रिया है। वह क्रिया उचित स्थान पर होनी चाहिए।
जो क्रिया गुप्त स्थान में करने की होती है उस क्रिया को प्रकट नहीं करना चाहिए। जो क्रिया प्रकट में करने की होती है, उसे गुप्त स्थान में नहीं करना चाहिए। बुद्धिमान वैसे शिष्ट पुरुष, स्थान का औचित्य समझ कर हर क्रिया करते हैं। यदि आप नहीं करते हो तो उनकी प्रशंसा तो कर सकते हो न?
बम्बई-अहमदावाद-दिल्ली जैसे बड़े शहरों में, जहाँ हजारों परिवारों को एक-एक कमरे में ही पारिवारिक जीवन जीना होता है वहाँ स्थान की मर्यादाओं का पालन प्रायः नहीं हो पाता है। सारी क्रियायें एक ही कमरे में करने की होती हैं! स्त्री-पुरुष की मर्यादा नहीं रहती, माता-पिता और संतानों की मर्यादा नहीं रहती। बच्चों को नहीं देखने योग्य दृश्य दिखाई देते हैं और उनके मन में विकृतियाँ प्रविष्ट हो जाती हैं | ग्राम्य संस्कृति की आज हो रही उपेक्षा :
सभा में से : क्या करें? आजीविका के लिए बड़े शहरों में जाना पड़ता है, गाँवों में तो व्यापार-धंधा रहा ही नहीं।
महाराजश्री : क्या आज मनुष्य को आजीविका की ही इच्छा है? जिनको आजीविका का प्रश्न नहीं है, क्या वे लोग शहर छोड़कर गाँव में नहीं लौट सकते? नहीं, आज हर आदमी को धनवान बनना है! हर व्यक्ति को अल्प मेहनत से ज्यादा धन कमा लेना है। शहरों में रहकर मौज-मजा करना है। ग्राम्य जीवन पसन्द ही किसको है? शहरों की विकृतियाँ पसन्द हैं, ग्राम्य जीवन की संस्कृति अब उपेक्षित हो गई है।
क्षेत्र-काल की मर्यादाओं का पालन, बड़े शहरों में असंभव सा बन गया है। या तो आप लोग, जिनको अब आजीविका कमाने की चिन्ता नहीं है, शहरों को छोड़ो अथवा शहरों की विकृतियों के भोग बनकर मानव जीवन को बरबाद
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