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प्रवचन-४४
२४३ होते देखते रहो। धनवान बनने की तीव्रलालसा में पागल बने हुए आप लोगों का इन्सान बनना बड़ा विकट प्रश्न बन गया है। धनवान बनने की धुन से क्या बन सकोगे? यह धुन भूत-पिशाच से भी ज्यादा भयानक है। लाखों करोड़ों रुपये मिल जाने पर भी इस धुन से मुक्त होना मुश्किल है। काफी सोच समझ कर ज्ञानदृष्टि के प्रकाश में धनसंपत्ति की असारता को हृदयस्थ कर इस धुन से छुटकारा पा लो। धनवान बनने की धुन से मुक्त बनो :
धनवान बनने की धुन से छुटकारा पाने वाला ही मानव जीवन के शृंगारभूत इन सामान्य धर्मों का पालन कर सकता है। करना है पालन? जीवन को गुणों के पुष्पों से सजाना है न? गुणों के सुवासित पुष्पों से सुशोभितजीवन का जो आनन्द, जो प्रसन्नता आप चाहते हो वह आनन्द, वह प्रसन्नता आपको ‘एयरकंडीशन्ड' बंगले में भी नहीं मिल सकेगी। यह बात आप के हृदय में अँचनी चाहिए। गुणमय जीवन जीने का आपका सदृढ़ संकल्प होना चाहिए। ___ शिष्ट पुरुषों का प्रशंसा करने योग्य एक आचरण है 'प्रधानकार्ये निर्बंधः' । कार्य तो अनेक होते हैं, परन्तु कुछ कार्य सामान्य होते हैं, कुछ कार्य महत्त्वपूर्ण होते हैं। कुछ कार्य तत्काल करने के होते हैं, कुछ कार्य नहीं छोड़े जा सकते। शिष्टपुरुषों की ऐसी प्रज्ञा होती है, बुद्धि होती है कि वे हर कार्य की गौणता-प्रधानता का विवेक कर सकते हैं और कार्यसफलता प्राप्त सकते हैं। ___जब अनेक कार्य एक साथ उपस्थित हो जाते हैं तब किस कार्य को मुख्यता देना, किस कार्य को महत्व देना, यह विवेक पर निर्भर करता है। कार्य की अग्रता पर श्री राम का दृष्टांत :
रामायणकाल में, वानरद्वीप पर एक दिन ऐसी ही घटना बन गई! वानरद्वीप का अधिपति था सुग्रीव | सुग्रीव की पटरानी थी तारा। राजकुमारी तारा के साथ शादी करना चाहता था विद्याधरकुमार साहसगति। जबकि तारा की शादी हो गई सुग्रीव के साथ, तब साहसगति सुग्रीव को दुश्मन मानने लगा। सुग्रीव साहसगति से ज्यादा बलवान था, इसलिए साहसगति तारा का अपहरण करने में समर्थ नहीं था, परन्तु उसके हृदय में तो तारा के प्रति प्रबल राग बना हुआ था। किसी भी तरह तारा को पाने की उसकी तीव्र इच्छा थी।
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