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प्रवचन -४४
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अच्छा विचार करना सरल बात है... अच्छा कार्य करना उतना सरल नहीं है! अच्छा कार्य करने को ताकत न हो तो भी अच्छे कार्य को प्रशंसा तो करनी ही चाहिए। अच्छे कार्य के प्रति हमेशा पक्षपाती बने रहो!
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हरएक कार्य के लिए उचित समय और उचित स्थान होता है। इस औचित्य का ज्ञान आदमी को होना जरूरी है।
प्रमाद- आलस- लापरवाही ये सब आदमी के बड़े शत्रु हैं। आत्मविकास को यात्रा के अवरोधक है। आत्मविकास के लिए प्रमाद का त्याग एवं सतत पुरुषार्थ करना ही होगा ! महत्वपूर्ण कार्य को छोड़कर इधर-उधर की बातों में भटकने वाले क्या खाक कुछ कर गुजरेंगे?
प्रवचन : ४५
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महान् श्रुतधर आचार्यदेव श्री हरिभद्रसूरीश्वरजी ने स्वरचित 'धर्मबिन्दु', ग्रन्थ में सर्वप्रथम गृहस्थ का सामान्य धर्म बताया है । चौथा गृहस्थधर्म बताया है : शिष्ट पुरुषों के चरित्र की प्रशंसा का । शिष्ट पुरुषों का सच्चरित्र कैसा होता है, वह विस्तार से मैं इसलिये बता रहा हूँ, ताकि आपको शिष्ट पुरुषों के चरित्र का ज्ञान हो और आप उसकी प्रशंसा कर सकें । प्रशंसा करते-करते आप भी वैसे शिष्ट पुरुष बन जायें! कभी, मान लो कि वे गुण आप में नहीं आ पाये, तब भी उन गुणों का पक्षपात आप में प्रस्थापित होगा और भवान्तर में वे गुण आप में अवश्य आएंगे ।
प्रशंसा का पक्षपात संस्कारप्रद :
आप इस सिद्धान्त को अच्छी तरह समझ लेना । मनुष्य जिस बात की प्रशंसा करता रहता है, उस बात का पक्षपात उसके मन में दृढ़ होता जाता है। जिस बात का पक्षपात हो जाता है, उसके गाढ़ संस्कार आत्मा में स्थापित होते हैं और ये संस्कार आत्मा के साथ जन्मान्तर में चलते हैं! जन्मान्तर में वे संस्कार मनुष्य में प्रकट होते हैं।
संभव है कि सभी अच्छी बातें वर्तमान जीवन में न भी आ पायें,
परन्तु