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प्रवचन-४४
इतनी प्रतिज्ञा कर लो और कल से ही नौकरी पर लग जाओ। अपना जीवन सुधारो और परिवार का जीवन भी सुधारो।'
उसने कहा : 'मैं सोचकर कल आऊँगा....।' खड़ा हुआ और चला गया! आज दिन तक वापस नहीं आया! अब आप बताइये कि, ये बातें जो नहीं मानें उसको आर्थिक सहायता करनी चाहिए? यदि आप लोग करोगे सहायता, तो उसका उपयोग क्या होगा? और, ऐसे व्यक्ति को आपने १००/२०० रूपये दे भी दिये, तो क्या करेगा? क्या परिवार के लिए खर्च करेगा? नहीं, वह पहले शराब की बोतल खरीदेगा! बाद में जुआ खेलेगा...स्वयं होटल में जाकर पेट भरेगा और जाएगा वेश्या के कोठे पर! इसलिए कहता हूँ कि आर्थिक मदद करने से पहले उन लोगों को व्यसनों से मुक्त करना होगा। पैसे का दुर्व्यय नहीं करें, वैसी स्थिति का निर्माण करना होगा।
मनुष्य को सर्वप्रथम यह बोध होना चाहिए कि 'मैं लक्ष्मी का दुर्व्यय करता हूँ, मुझे नहीं करना चाहिए।' इतनी समझदारी आएगी तो ही वह शिष्ट पुरुषों की प्रशंसा कर सकेगा कि 'ये महानुभाव एक पैसे का भी दुर्व्यय नहीं करते।' प्रसन्न जीवन जीने का सही रास्ता : __ पैसे का दुर्व्यय करना भी फैशन बन गया है! सामाजिक 'स्टेटस' माना जाता है! 'आप लोग 'पिक्चर' देखने नहीं जाते? आप लोग 'केन्टीन' में चाय नहीं पीते? आप लोग ऐसे-ऐसे कपड़े नहीं पहनते?....आप लोग घर में 'फ्रीज' नहीं लाते?....रेडिओ नहीं बजाते? टी. वी. नहीं है आपके घर में? अभीतक आपने 'डायनिंग टेबल' नहीं बसाया? अभी तक घर में नौकर नहीं? सब काम आप स्वयं करते हो?....' पैसे के दुर्व्यय को फैशन मानने वाले लोग ऐसी बातें करके अपना गौरव बताते फिरते हैं! दुर्व्यय नहीं करने वालों को हीन भाव से देखते हैं! ऐसे लोग शिष्ट पुरुषों की प्रशंसा कैसे करेंगे? वे तो उपहास करेंगे!' यह तो कंजूस है...अठ्ठारहवीं शताब्दी में जीता है 'ऑर्थोडोक्स' है...' ऐसा-ऐसा बोलेंगे! ___शिष्ट पुरुषों का लक्ष्य होता है आत्महित का। लक्ष्य होता है मन की प्रसन्नता का और तन की पवित्रता का। इस लक्ष्य से जीवन जीने वाले शिष्ट पुरुष, कम से कम आवश्यकताओं से जीवन जीने की पद्धति अपनाते हुए जीते हैं। वे किसी का अनुकरण नहीं करते। वे चलते हैं ज्ञानी पुरुषों के मार्गदर्शन के अनुसार । देखा-देखी और अन्ध-अनुकरण उनको कतई पसन्द नहीं आता।
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