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प्रवचन-४४
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मध्यम कक्षा के परिवार में सिनेमा देखने का मासिक खर्च कितना ? बीसपचीस रूपये तो आसानी से खर्च हो जाते हैं। बीडी-सिगरेट और होटल की चाय का खर्च कितना? मासिक पचास रूपये तो मामूली खर्च ! साबुन का खर्च कितना? घर में कितने प्रकार के साबुन चाहिए? कितने प्रकार के पावडर चाहिए? धोबी का खर्च अलग! घर में हर व्यक्ति का पॉकेट-खर्च अलग!
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इतने सारे फालतू खर्च करना और फिर चिल्लाना कि 'मध्यम कक्षा के परिवार दु:खी हैं...उनकी सहायता करना चाहिए ! उनको आर्थिक मदद देनी चाहिए!' इतना ही नहीं अब तो जुआ खेलना 'मटका' खेलना भी सामान्य हो गया है। इस प्रकार पैसे का दुर्व्यय करने वाले लोग कैसे सत्कार्य कर सकते हैं ? दुर्व्यय करते हैं, फिर भी मानने को तैयार नहीं कि 'हम दुर्व्यय करते हैं!' नहीं, वे तो मानते हैं कि 'हम सब कुछ ठीक ही करते हैं! इस जमाने में यह सब कुछ तो होना चाहिए ।' कुछ लोग तो समाज की, धार्मिक संस्थाओं की या दानवीरों की सहायता लेकर - आर्थिक सहायता प्राप्त करके मौज-मजा करते हैं! व्यसन-सेवन करते हैं!
व्यसनों में डुबे हुए को सहायता कैसी ?
एक गाँव में हम वर्षाकाल व्यतीत कर रहे थे । एक दिन एक ३५-४० वर्ष का युवक मेरे पास आया। उसने मुझे कहा : 'मेरी सर्विस छूट गई है, मेरी पत्नी 'प्रेगनन्ट' है, मेरे पास पैसे नहीं है, कृपा कर किसी व्यक्ति से या संस्था से मुझे कुछ आर्थिक सहायता करवाइये अथवा 'सर्विस' मिल....जाये...वैसा प्रबन्ध करवाने की कृपा करें ।'
मैंने उसका नाम पता ले लिया और कहा कि 'कल आना।' वह चला गया।
३. परस्त्री का त्याग करना,
४. प्रतिदिन मंदिर जाना,
मैंने उस व्यक्ति के विषय में कुछ जानकारी प्राप्त की। दूसरे दिन वह आया, बैठा। मैंने कहा : 'तुम्हें नौकरी तो मिल सकती है मासिक ३००/४०० रूपये मिल सकते हैं, परन्तु मेरी चार बातें माननी पड़ेंगी। चार प्रतिज्ञाएं लेनी होंगी!'
उसके मुँह पर चिन्ता की रेखाएं उभर आई ! मैंने कहा :
१. जुआ नहीं खेलना,
२. शराब नहीं पीना,
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