Book Title: Dhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 213
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०५ प्रवचन-४१ ही होगा। हालाँकि अशुद्ध आत्मा को शुद्ध करने की प्रक्रिया में कुछ कष्ट सहन करने होंगे। अशुद्धियाँ वैसे ही, बिना तप किये, बिना ज्ञान पाये दूर नहीं होती हैं। मनुष्य बस, यहाँ घबराता है। अशुद्धियों को मिटाने के लिये स्वेच्छा से जो तप-त्याग के कष्ट सहन करने होते हैं, वहाँ मनुष्य डरता है। अशुद्धिजन्य दुःख सहन करना स्वीकार है, विशुद्धि प्राप्त करने हेतु दुःख सहन करना अस्वीकार है। विशुद्धि के मार्ग पर कुछ भीतर का छोड़ना है, कुछ बाहर का छोड़ना पड़ता है। जो पकड़ा हुआ है उसको छोड़ने में मनुष्य दुःख महसूस करता है। बाहर का छोड़ने में दुःख और भीतर का छोड़ने में भी दुःख | इसलिए आज मनुष्य ऐसा धर्म खोजता है कि जो धर्म छोड़ने की बात न करता हो। जो पकड़ा हुआ है-वह छूटे नहीं, और मुक्ति दिला दें! कुछ बुद्धिमानों ने इसमें अच्छा 'बिजनेस' देखा । दुःखभीरु लोगों को धर्म के नाम पर फँसाने का जाल बिछाया। 'तुम्हें घर छोड़ने की जरूरत नहीं, व्यापार छोड़ने की जरूरत नहीं, आनन्दप्रमोद और भोग-विलास छोड़ने की जरूरत नहीं, भीतर की वासनाएँ भी छोड़ने की नहीं....इच्छाओं को कुचलना नहीं....बस. मेरे प्रवचन सुनो, पढ़ो, गाओ और नाचो । मुक्ति निकट है।' मायाजाल का फैलाव : भाषा पर प्रभुत्व, वक्तृत्व छटा, विशाल प्रचारतंत्र और दिखावा साधुसंन्यासी जैसा | बुद्धिमान और पढ़े-लिखे कहलाने वाले लोग भी इस मायाजाल में फँस गये थे। चूंकि वे कष्टभीरू हैं। अशान्ति से मुक्त होना है परन्तु बिना छोड़े हुए! सुख पाना है परन्तु बिना कुछ छोड़े हुए! त्याग जो कि मोक्षमार्ग की आराधना में अनिवार्य अंग है, उसका उपहास किया जा रहा है। तपश्चर्या को और तपस्वियों को हीनदृष्टि से देखा जा रहा है। शील और सदाचार की परिभाषा ही बदल दी है इन सिरफिरे लोगों ने! मनःकल्पित परिभाषा! दुराचार-व्यभिचार जैसे पापों का आचरण करने की इजाजत दे दी 'मुक्त सहचार' के नाम पर | मांसभक्षण और मद्यपान निषिद्ध नहीं। फिर भी लोगों को समझाये जाते हैं कि 'तुम शीघ्र ही मुक्त हो जाओगे।' और पागल लोग बहकावे में आ भी जाते हैं। हमारे सर्वज्ञ-सर्वदर्शी वीतराग परमात्मा ने बताया है कि अशुद्ध आत्मा को तप से, त्याग से, व्रत से, ज्ञान से, ध्यान से ही विशुद्ध बनाया जा सकता हैं। For Private And Personal Use Only

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