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प्रवचन - ४१
बात को सही ढंग से समझो :
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एक लड़का विदेश में अध्ययन कर M. S. की डिग्री लेकर भारत वापस आया। उसकी माँ वतन के गाँव में रहती थी । वह सीधा उस गाँव में पहुँचा । गली के नुक्कड़ पर गाड़ी रोक दी गाड़ी से निकल कर गली में आता है, अपनी माता को रास्ते पर ही खड़ी देख लिया । वह दौड़ा .... और रास्ते पर ही माँ के चरणों में गिर पड़ा। माँ और बेटा, दोनों गद्गद् थे.... इस दृश्य को चार-पाँच युवकों ने देखा वे लोग कालेज में पढ़ते थे.... । वे हँसने लगे । और आलोचना करने लगे 'रास्ते पर माँ के चरणों में गिरने की क्या आवश्यकता थी? घर में जाकर माँ के चरण छू नहीं सकता था? परन्तु भाई, यह भी एक दिखावा है। दुनिया को बताना है कि मैं विदेश में पढ़कर आया हूँ फिर भी मातृभक्त हूँ। ऐसी तो अनेक बातें करते रहें। करते ही रहेंगे जैसे लोग ऐसी बातें। माँ को गालियाँ बकने वाले और पिता के साथ लड़ने-झगड़ने वाले लोग दूसरा और क्या करेंगे! शिष्ट पुरुषों के सदाचारों को भी संशय से देखनेवाले लोग सदाचरणों के प्रशंसक नहीं बन सकते ।
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जो लोग सरल होते हैं, गुणदृष्टि वाले होते हैं वे ही शिष्टपुरुषों के सदाचारों के प्रशंसक बन सकते हैं। शिष्ट श्रेष्ठ श्रीपाल के जीवन प्रसंगों के माध्यम से अपन शिष्टता का परिचय करेंगे और शिष्टतापूर्ण आचरणों के प्रशंसक बनेंगे।
आज, बस इतना ही ।