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प्रवचन-४३
२२७ सभा में से : हम लोगों को तो वाद-विवाद करना और विसंवादी जीवन जीने में ही मजा आता है। __महाराजश्री : मजा आता है? भले आये मजा, परन्तु वाद-विवाद और विसंवाद की बुराई का खयाल आ गया न? 'वाद-विवाद नहीं करना चाहिए, जीवन में विसंवाद नहीं होना चाहिए' यह बात अच्छी लगती है न? 'बुराई में मजा लेना अच्छा नहीं है,' ऐसा बोध हो जाय तो एक दिन वह बुराई छूट जायेगी, बुराई में मजा नहीं आएगा। शिष्ट पुरुषों की प्रशंसा करते रहने से आप में शिष्टता आयेगी ही। गलत आदमी की प्रशंसा मत करो :
प्रशंसा करते समय दो बातों का खयाल रखना चाहिए | गलत व्यक्ति के सामने प्रशंसा नहीं करना! दूसरी बात है - जिस गुण की, जिस विशेषता की प्रशंसा करें उस गुण की और विशेषता की हर दृष्टि से सिद्धि करने की क्षमता रखें! संभव है कि आप जिस बात की प्रशंसा करोगे, सुनने वाले प्रतिवाद भी करेंगे! उस समय दिमाग गरम नहीं होने देना! चुप भी नहीं होना! स्वस्थता से और दृढ़ता से उस बात की उपादेयता सिद्ध करना। यदि आप में ऐसी तर्कशक्ति या समझाने की शक्ति नहीं है, तो प्रतिवाद करनेवाले को मेरे पास ले आना! शिष्टता हर समय उपादेय होती है, देश और काल के बंधन से शिष्टता मुक्त होती है। शिष्टतापूर्ण जीवन जीने का आनन्द अपूर्व होता है! शिष्टतापूर्ण आचरण स्व-पर के लिए कल्याणकारी होता है। शिष्टता का संपादन करने का उपाय कितना सरल बताया गया है? शिष्टता की मात्र प्रशंसा करते रहो।
शिष्ट पुरुषों के शेष विशिष्ट गुणों का, उनके आचरणों का विवेचन आगे करेंगे।
आज, बस इतना ही।
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