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प्रवचन- ४३
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है ..... कभी क्या बोलेगा, कभी क्या ! यह बोलेगा कुछ और करेगा कुछ।' दुनिया चाहती है कि आप जैसा बोलो, वैसा करो ! बात भी ठीक है! जैसा बोलें वैसा करना चाहिए! बोलने में भी संवादिता होनी चाहिए ! कभी अहिंसा की बात करें और कभी हिंसा करने का उपदेश दें, कभी सत्य का प्रतिपादन करें और कभी झूठ बोलने पर उतारू हो जायं ! कभी प्रामाणिकता की बात करें और कभी बेईमानी की उपादेयता बताएँ.... ऐसे लोग भरोसेपात्र नहीं बनते। एक सिद्धान्त नहीं होने से ऐसे लोग आफत में फँस जाते हैं । व्यापार में ऐसे लोग सफलता नहीं पा सकते। समाज में प्रियता नहीं पा सकते । धर्मक्षेत्र में तो उसका प्रवेश ही नहीं हो सकता। ऐसे लोग 'ठग' माने जाते हैं।
वाणी-वर्तन में संवाद रखना सीखो :
आप लोग यहाँ उपाश्रय में धर्मस्थान में आते हो, धर्मक्रियाएँकरते हो, मंदिर में जाते हो और परमात्मा के दर्शन-पूजन करते हो .... दुनिया आपको देखती है 'यह कितना अच्छा आदमी है!' आपके लिए उच्च कल्पना होती है। परन्तु जब आप बाजार में जाते हो, दुकान पर जाते हो अथवा दफ्तर में जाते हो, वहाँ आप ग्राहकों के साथ अनीतिपूर्ण व्यवहार करते हो, अन्याय करते हो, क्रूरतापूर्ण आचरण करते हो .... तब दुनिया आपको देखती है 'यह कैसा बेईमान और क्रूर आदमी है....' आपके लिए निम्न स्तर की कल्पना बनती है ! अब देखने वालों के मन में विसंवाद पैदा होता है! आपके जीवन में विसंवाद देखने को मिला! धर्मस्थानों में मंदिर में आपका रूप देखा धार्मिकता का, दुकान - दफ्तर में आपका रूप देखा शैतानियत का ! धार्मिकता और शैतानियत में संवादिता नहीं होती । धार्मिकता के साथ शैतानी का विसंवाद होता है ! धार्मिकता और बेईमानी का मेलजोल नहीं होता ! धार्मिकता के साथ मेलजोल होता है ईमानदारी का, दया और दिव्य करुणा का, न्याय और नीति का । विशेष प्रकार की धर्मक्रियाएँ करने वालों में सामान्य धर्म यदि होते हैं, सामान्य धर्मों का पालन है तो जीवन में संवादिता स्थापित होती है। विशेष प्रकार की धर्मक्रिया करने वालों के जीवन में, न्याय-नीति इत्यादि सामान्य धर्मों का पालन नहीं होता है तो विसंवादिता प्रगट होती है। ऐसे लोग न तो शान्ति पाते हैं न, ही लोकप्रियता !
केवल पैसों के लिए इतनी क्रूरता क्यों ?
एक शहर में एक न्यायाधीश ने मुझे बताया था कि 'महाराजश्री आपके
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