Book Title: Dhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 238
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २30 प्रवचन-४३ साधु बन जाता है तो उस साधु में दुर्जनता ही बढ़ने वाली है। चूंकि आप लोग सज्जनता के पक्षपाती नहीं रहे! आप साधु और श्रावक के पक्षपाती बन गये हो। साधुता से और सज्जनता से आपको कुछ लेना देना नहीं है। साधु में साधुता न हो परन्तु अच्छा वक्ता हो अथवा तपस्वी हो....बस, आप उसके गुण गाओगे! श्रावक में जैनत्व न हो परन्तु वह यदि श्रीमन्त है अथवा सत्ताधीश है तो बस, आप उसके गुण गाते फिरोगे! फिरोगे न? सज्जनता के बिना, शिष्टता के बिना, शिष्टता के पक्षपात के बिना, धार्मिक या आध्यात्मिक नहीं बना जाता। बिना मानवता के मानव कैसे? मानवता का अनुराग, मानवता का पक्षपात हुए बिना मानव कैसे? परन्तु आजकल बिना मानवता का मानव भी स्वीकृत हो गया है! बिना सज्जनता के भी सज्जन माना जाता है! बिना साधुता के भी साधु माना जाता है! ऐसी दुनिया में जीना और शिष्टता-सज्जनता संपादन करना, कितना मुश्किल काम है? फिर भी दृढ़ संकल्प से कौनसी सिद्धि प्राप्त नहीं हो सकती है? 'मैं शिष्ट सज्जन बन सकता हूँ, मुझे शिष्टता प्राप्त करना है, ऐसे संकल्प के साथ, आप शिष्ट पुरुषों के सदाचरणों की प्रशंसा करना शुरू कर दो। लिया हुआ कार्य पूर्ण करो : शिष्ट पुरुषों की कुछ नयी विशिष्टता आज बताऊँगा। ये महापुरुष कोई भी अच्छा काम हाथ में लेंगे, उसे पूरा कर के ही छोडेंगे! काम हाथ में लेने से पूर्व, कार्य स्वीकार करने से पूर्व, वे शिष्टजन हर दृष्टि से सोच लेंगे! कार्य की योग्यता-अयोग्यता का, अपनी बुद्धि से और शास्त्रदृष्टि से निर्णय करेंगे। कार्य की योग्यता का निर्णय होने के बाद, 'यह कार्य मुझे करना ही है, विघ्न आयेंगे, तो भी मैं कार्य नहीं छोडूंगा...।' ऐसा सुदृढ संकल्प करते हैं और कार्य शुरू करते हैं। कार्यसिद्धि में विघ्न तो आते ही हैं! अच्छे कार्यों में तो हजारों विघ्न आयेंगे! इसलिए एक महर्षि ने कहा है - 'श्रेयांसि बहुविघ्नानि'! विघ्नों से, आफतों से शिष्टजन डरते नहीं हैं। विघ्नों पर विजय पाने के लिए, विघ्नों को कुचलने के लिए, वे भरसक प्रयत्न करते हैं। जब तक कार्यसिद्धि न हो तब तक वे प्रयत्न जारी रखते हैं। विघ्नों से डरकर, निराश हो कर कार्य छोड़ नहीं देते हैं। अधूरा कार्य छोड़ना उनके स्वभाव में ही नहीं होता! परदुःखभंजक राजा विक्रम का जीवनचरित्र पढ़ा है? वह जो कार्य हाथ में For Private And Personal Use Only

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