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प्रवचन -४४
२. मेरी पत्नी मेरे साथ है।
३. मेरे संतान मेरे प्रति स्नेह रखते हैं ।
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मेरे मित्र मुझे सहायता करने को तैयार हैं ।
मेरे पास घर और दुकान है।
मेरी बुद्धि सलामत है ।
७. परमात्मा में मेरी श्रद्धा है।
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मैंने कहा : महानुभाव, इतनी सात-सात बातें आपके पास हैं, फिर मरने की बात क्यों सोचते हो? इतना सब कुछ होने पर निराशा क्यों ? अब तो चाहिए इन साधनों का सदुपयोग करने का उत्साह ! कार्यसिद्धि का दृढ़ संकल्प! परमात्मा के चरणों की शरणागति !'
वह हर्ष से गद्गद् हो गया और उत्साह लिए चला गया । कार्यसिद्धि के लिए चाहिए उत्साही मन! उल्लासपूर्ण हृदय और स्थिर ....शान्त बुद्धि । शिष्ट और सज्जनों में ये बातें होती हैं उनके परिचय से, उनकी प्रशंसा से ये बातें आपके जीवन में आ सकती हैं।
शिष्ट पुरुषों का एक नया परिचय है कुलधर्मों का पालन! अपनी कुलपरंपरा में जो भी परमार्थ-परोपकार की धर्मप्रवृत्ति चली आ रही हो उसका पालन शिष्ट पुरुष करते रहते हैं। मान लो कि पीढ़ी दर पीढ़ी सदाव्रत चला आ रहा हो, प्याऊ चली आ रही हो, शिष्ट पुरुष उसको बंद नहीं करेगा। हाँ, जब तक उसकी शक्ति होगी तब तक वह चलाता रहेगा ।
जैसे प्राचीनकाल में क्षत्रियों का कुलधर्म था शरणागत की रक्षा करने का । कुलपरम्परा में यह धर्म चलता रहता था... अभी न तो रहे वैसे क्षत्रिय और न रहा वह धर्म। कुछ कुल परम्पराओं में अतिथिसत्कार का धर्म चलता रहता था। जब तक ऐसी कुलपरम्पराओं में शिष्ट पुरुष होते रहे तब तक कुलधर्मों का पालन होता रहा, धीरे-धीरे शिष्ट पुरुषों का अभाव होता गया और कुलधर्मों का पालन भी समाप्त होने लगा। फिर भी, कहीं पर, किसी परिवार में कुलधर्मों का पालन होता हुआ दिखाई दे तो प्रशंसा करना ।
संस्कृति : आत्मधर्म की आधारशिला :
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जिस कुलधर्म के पालन में हिंसा, झूठ, चोरी, दुराचार, व्यसन - सेवन इत्यादि पाप न होते हों वैसे कुलधर्म का पालन प्रशंसनीय होता है । वास्तव में