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प्रवचन-४२ करने के लिए गुणदृष्टि होना अनिवार्य है। इस दृष्टि के अभाव में आज गृहस्थजीवन असंख्य क्लेश-क्लह में फँस गया है। पारिवारिक जीवन भी नष्ट हुआ जा रहा है। एक-दूसरे के दोष ही दोष देखे जा रहे हैं... दोषदर्शन और दोषानुवाद से द्वेष बढ़ता जा रहा है। द्वेष की भयानक आग में स्नेह जल गया है। दोषदर्शन जब तक रहेगा दोषानुवाद जब तक रहेगा, स्नेह का अमृत नही मिलेगा। __ शादी के बाद लड़का अपनी पत्नी के सामने अपनी माँ की प्रशंसा करता है, माँ के गुणों की प्रशंसा करता है, यदि पत्नी गुणदृष्टिवाली नहीं है तो पति की बातें उसको पसन्द नहीं आयेंगी। वह पति की बात का गलत अर्थघटन करेगी : 'मेरा पति माँ का भक्त है, उसको माँ ही प्यारी है, मेरे प्रति प्यार नहीं है!' फिर वह पति को अपना बनाने के लिए सास की निन्दा करना शुरू कर देगी! अनेक कष्ट-संकट सहन करके जिस माँ ने पुत्र को बड़ा किया है, उस पुत्र को माँ से अलग करने का पाप करेगी। ऐसा करने से पति का सुख मिल जाता है क्या? मातृभक्ति की निर्मम हत्या करने वाले को सुख मिल ही नहीं सकता! दोषदृष्टि और दोषानुवाद उसको नष्ट कर के रहता है। पति को भी वह दोषदृष्टि से देखेगी! पति का भी दोषानुवाद करेगी! परिणाम क्या आएगा? परस्पर द्वेष और कलह! फिर जीवन में क्या रह जाएगा? अब दूसरा प्रसंग देखें :
शादी के बाद लड़का यदि अपनी पत्नी के गुणों की प्रशंसा माता के सामने करता है, माँ यदि गुणदृष्टि वाली नहीं है, तो उसको पुत्रवधू की प्रशंसा पसन्द नहीं आएगी। वह समझेगी कि लड़का पत्नी के मोह में फँसता जा रहा है! और मेरी उपेक्षा हो रही है। और वह माँ पुत्रवधू के दोषों को देखेगी...दोषानुवाद करेगी! पुत्र और पुत्रवधू के बीच द्वेष पैदा करेगी! जिस पुत्र को सुखी करने के इरादे से माँ लड़के की शादी करती है, उसी लड़के को दुःखी करने का काम करने लगती है। पुत्र के दोष देखती है, पुत्रवधू के दोष देखती है और दूसरे लोगों के सामने दोषानुवाद करती है। वृद्धावस्था में बहुत दुःख पाती है। आर्तध्यान-रौद्रध्यान में यदि मरती है तो दुर्गति में चली जाती है। दोषदर्शन दुःख का कंटीला रास्ता :
परदोषदर्शन, दोषचिन्तन और दोषवचन आर्तध्यान है | आर्तध्यान जब तीव्र बनता है, जब निरन्तर चलता है, तब रौद्रध्यान बन जाता है। आर्तध्यान और
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