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प्रवचन-४२
२१४ चलें।' महामंत्री ने कहा : 'महानुभाव, इस रज का स्पर्श तो महान् पुण्य से प्राप्त होता है। इस रज के स्पर्श से पापरज का नाश होता है। शाश्वत् गिरिराज के मार्ग पर चलने वाले हजारों स्त्री-पुरुष के चरण-स्पर्श से, इस मार्ग की रज पवित्र बनी है, इस रज के स्पर्श से अपन भी पवित्र बनेंगे।' वस्तुपाल ने संघ के साथ पधारे हुए आचार्य श्री नरचन्द्रसूरिजी को वंदना की और संघपति पुनड़ को गले लगाया। नगर के बाहरी सरोवर के किनारे संघ का पड़ाव लगा। वस्तुपाल ने सकल संघ को भोजन का निमन्त्रण दिया। निमन्त्रण को स्वीकार किया गया । वस्तुपाल के हृदय में संघभक्ति करने के उच्चतम भाव उमड़ रहे थे।
संघभक्ति करने के लिए महामंत्री ने श्रेष्ठ भोजन तैयार करवाया। सभी संघयात्रिकों का स्वागत करने महामंत्री स्वयं उपस्थित हुए। एक-एक यात्रिक के पैर वे स्वयं धोते हैं और तिलक करते हैं। दो प्रहर यानी ६ घंटे बीत गए....तब तेजपाल ने आकर कहा : 'हे नाथ, आप भोजन के लिए पधारें, यह काम अपने दूसरे स्वजनों के पास करवायेंगे।' वस्तुपाल ने कहा : 'भाई, मुझे बिल्कुल थकान नहीं आयी है, मेरा उल्लास बढ़ता जा रहा है और फिर ऐसा अवसर तो अनंत अनंत पुण्य से प्राप्त होता है।' संघभक्ति क्या चीज है? __आचार्यदेव नरचन्द्रसूरिजी को ज्ञात हुआ कि 'महामंत्री ने अभी तक भोजन नहीं किया है और वे स्वयं संघयात्रिकों का पादप्रक्षालन कर रहे हैं।' उन्होंने महामंत्री को कहलवाया कि 'परिवार के मुख्य पुरुष का यत्न से रक्षण करना चाहिए, उनका नाश होने से परिवार का नाश होता है। इसलिए आपको भोजन कर लेना चाहिए।' महामंत्री ने गुरूदेव को नम्रतापूर्ण वचनों में संदेश भेजा : 'हे गुरूदेव, आज मेरे पिता की आशा परिपूर्ण हुई! आज मेरी माता के आशीर्वाद सफल हुए! देवाधिदेव परमात्मा ऋषभदेव के यात्रियों का मैं प्रसन्नचित से पूजन कर रहा हूँ... मुझे जरा भी खेद नहीं है, थकान नहीं है।'
'संपदि नम्रता' इसको कहते हैं। वस्तुपाल-तेजपाल के पास वैभव था, सत्ता थी...लोकप्रियता थी.... फिर भी वे निराभिमानी थे। विनम्र थे। ऐसी विनम्रता देखकर उनकी प्रशंसा हो ही जायें | नागपुर के संघ को बहुमानसहित भोजन करवाया और सुन्दर वस्त्र भेंट किये । संघपति पुनड़ हर्ष से गद्गद् हो गया। वस्तुपाल-तेजपाल की गुणसमृद्धि देखकर विशेषकर उनकी नम्रता
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