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प्रवचन- ४२
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कार्यसिद्धि में अवरोध पैदा करते हैं । यदि दृढ़ मनोबल नहीं होगा, यदि भाव नहीं होगा तो कार्य रुक जायेगा । कार्य छूट जायेगा । इतना ही नहीं, कष्टभीरु लोग गलत रास्ते भी चले जाते हैं । दुःखों में जब उनकी धीरता नहीं रहती हैं, सुख पाने के लिए इधर-उधर भटक जाते हैं।
दु:खों मे, कष्टों में, आपत्तियों में जो स्त्री-पुरुष दीन नहीं बने, अधीर नहीं बने, कायर नहीं बने, उनके नाम प्रातःस्मरणीय बन गये । उनका जीवन आदर्शभूत बन गया। ऐसे महापुरुषों के सदाचरणों की प्रशंसा करते रहो । सुख वैभव में विनम्र बने रहो :
'संपदि नम्रता' संपत्ति के समय नम्रता, यह भी सज्जनों की एक विशिष्टता है । जब कोई वैभवशाली को, श्रीमन्त को, सत्ताधीश को और नम्र देखो, उसकी नम्रता की प्रशंसा करो | श्रीमन्त और सत्ताधीश में नम्रता होना असाधारण गुण है। देखते हो न दुनिया में ? श्रीमन्त और सत्ताधीश में प्रायः अभिमान ही पाओगे ।
जो श्रीमन्त शिष्टपुरुष होता है, जो सत्ताधीश शिष्ट पुरुष होता है, उसमें नम्रता दिखाई देगी! ऐसे लोग गुरूजनों के सामने तो नम्र होते हैं, गरीबों के सामने भी नम्र होते हैं। कभी वे दूसरों का तिरस्कार नहीं करते । अनादर नहीं करते।
जिस समय गुजरात में राणा वीरधवल का राज्य था उसके महामंत्री थे वस्तुपाल-तेजपाल । वस्तुपाल - तेजपाल संपत्तिशाली तो थे ही, सत्ताधीश भी थे, परन्तु वैसे ही विनम्र थे। उनके जीवन की एक रोमांचक घटना सुनाता हूँ । वस्तुपाल-तेजपाल की विनम्रता कितनी ?
वि. सं. १२८६ की यह घटना है। नागपुर के श्रेष्ठि पुनड़ ने शत्रुंजयगिरिराज (पालीताना) का पैदल संघ निकाला । संघयात्रा में हजारों स्त्री - पुरुष थे। तेजपाल ने सामने जाकर संघपति को विनती की कि 'धोलका' (गुजरात की तत्कालीन राजधानी) में होकर पधारो । संघपति ने विनती को स्वीकार किया । जब संघ धोलका के निकट प्रदेश में पहुँचा, महामंत्री संघ के सामने गये । हजारों स्त्री-पुरुष पैदल चल रहे थे । १८०० बैलगाडियाँ चल रही थीं, काफी धूल उड़ रही थी । वस्तुपाल के साथ जो श्रेष्ठिगण था, उसने महामंत्री से कहा : 'इस रास्ते पर ज्यादा धूल उड़ रही है इसलिए अपन दूसरे रास्ते से
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