________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रवचन-४२
२१६ . पहले तय करो कि तुम्हें क्या होना है? कैसा बनना है? बस, फिर वैसे लोगों की प्रशंसा करते रहो, दुष्ट बनना हो तो दुष्टों
की और सज्जन बनना हो तो सज्जनों की प्रशंसा करते रहो। .सुख-संपत्ति में विनम्र बने रहो।
अप्रस्तुत और अप्रासंगिक बोलने से बहुत से निरर्थक विवाद-झगड़े हो जाते हैं। इसलिए बोलने में सावधानी रखो....विवेक रखो। जबान पर लगाम जरूरी है। धार्मिकता और बेईमानी के बीच मेल जमता ही नहीं, धार्मिकता के साथ मेल जमता है प्रामाणिकता का-ईमानदारी का। धार्मिकता के साथ संवाद होता है दया और करुणा
का, न्याय एवं नीति का। .जीवन में दोगलापन खतरनाक है....संवादिता एवं सामंजस्य
से ही जीवन निखरेगा।
प्रवचन : ४३
महान् श्रुतधर पूजनीय आचार्य श्री हरिभद्रसूरिश्वरजी स्वरचित 'धर्मबिन्दु' ग्रन्थ में गृहस्थजीवन का सामान्य धर्म बता रहे हैं। चौथा सामान्य धर्म बताया है शिष्टपुरुषों के चरित्र की प्रशंसा । क्या बनना है?
दोषजन्य दुष्टता मिटाने के लिए गुणजन्य शिष्टता संपादन करनी चाहिए। दुष्टता और शिष्टता के बीच सेतु है प्रशंसा का! शिष्ट पुरुष यदि दुष्टता की प्रशंसा करने लगेगा तो वह अवश्य दुष्ट बनेगा! दुष्ट पुरुष यदि शिष्टता की प्रशंसा करता रहेगा तो वह जरूर शिष्ट बनेगा! जिस मनुष्य को जैसा बनना हो, वैसे मनुष्यों की प्रशंसा करता रहे तो वह वैसा बन जायेगा। क्रोधी बनना हो तो क्रोधी की प्रशंसा करो, क्षमाशील बनना हो तो क्षमावान की प्रशंसा करो! अभिमानी बनना हो तो अभिमानी की प्रशंसा करो, विनम्र बनना हो तो विनम्र पुरुषों की प्रशंसा करो । मायावी बनना हो तो मायावी की प्रशंसा करो, सरल बनना हो तो सरल जीवों की प्रशंसा करो। परिग्रही बनना हो तो परिग्रही की प्रशंसा करो, अपरिग्रही बनना हो तो अपरिग्रही की प्रशंसा करो।
For Private And Personal Use Only