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प्रवचन-४२
२१५ देखकर हर्षविभोर हो गया | उसने वस्तुपाल को आग्रहपूर्ण प्रार्थना की : 'आप हम सब के साथ पालीताना पधारें।' वस्तुपाल ने विनती को स्वीकार किया।
ऐसी विनम्रता देखकर प्रशंसा हो ही जाये न? यदि मुँह से प्रशंसा के पुष्प बिखर जायें तो समझना कि गृहस्थजीवन का चौथा सामान्य धर्म आप में आ गया है। जैसे भूतकाल की ऐसी घटनाएँ सुनकर हृदय हर्ष से पुलकित हो जाता है, वैसे वर्तमानकाल में कोई ऐसी घटना देखने को मिले या सुनने को मिले तो हृदय आनन्दित होना चाहिए | गुणानुवाद हो जाना चाहिए।
विपत्तियों में दीनता नहीं और संपत्ति में अभिमान नहीं-यह है सज्जनों की असाधारण विशेषता! अपने जीवन में यदि ऐसी विशेषता पाना है तो गुणानुरागी बनो । गुणों के प्रशंसक बनो । गुणों की प्रशंसा करते ही रहो। एक दिन ऐसा आयेगा कि आप ऐसी असाधारण विशेषताओं के धनी बन जाओगे।
गुणवान बनने के लिए गुणानुरागी बने रहना, आवश्यक ही नहीं वरन् अनिवार्य है।
आज, बस इतना ही।
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