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प्रवचन-४३
२२१ है। इसलिए आचार्य श्री हरिभद्रसूरीश्वरजी, शिष्ट पुरुषों के चरित्र की प्रशंसा करने का उपदेश देते हैं। प्रशंसा करने से शिष्टता प्राप्त होती है। प्रशंसा कृत्रिम नहीं होनी चाहिए, स्वाभाविक होनी चाहिए, हार्दिक होनी चाहिए। बोलो पर तोलकर :
शिष्ट पुरुषों की एक और विशेषता होती है 'प्रस्तावे मितभाषित्वम्'! शिष्ट पुरुष मितभाषी होते हैं, बहुत कम बोलते हैं। जो बोलते हैं वह भी प्रसंग के अनुसार बोलते हैं। जैसा प्रसंग हो, जैसी बात हो, उसी के अनुरूप बोलते हैं....वह भी थोड़ा ही बोलते हैं। ___ जीवनव्यवहार में यह बात बहुत महत्व रखती है। ज्यादातर लोगों को बहुत बोलना पसन्द होता है। लोग बोलते ही रहते हैं। हर जगह बोलते हैं, हर बात में अपनी टाँग अड़ाते रहते हैं! जिस विषय की जानकारी हो उस विषय में बोलते हैं और जिस विषय में जानकारी नहीं होती है उस विषय में भी बोलते रहते हैं। मौन रहना उपवास करने से भी ज्यादा मुश्किल लगता है! दुनिया में ज्यादा अनर्थ, ज्यादा झगड़े....ये बहुत बोलने वाले लोग ही किया करते हैं। कहाँ बोलना, कितना बोलना, क्या बोलना...ज्यादातर लोग जानते नहीं हैं...और बोले बिना रह नहीं सकते! यह अशिष्टता है, असभ्यता है। सद्गृहस्थ को शोभा नहीं देता है। प्रस्तुत एवं प्रासंगिक बोलना सीखो :
अप्रस्तुत और अप्रासंगिक बोलने से कई निरर्थक विवाद पैदा होते हैं। जहाँ मौन रहना आवश्यक होता है वहाँ बोलने से झगड़ा हो जाता है। एक लड़का है, उसको घर में या दुकान में बोले बिना चैन नहीं पड़ता है। भाई और भाभी की बात में भी वह बोलेगा! माता और पिता की बात में भी बोलेगा! परिणाम यह आया है कि वह लड़का घर में अप्रिय बन गया। घर में उसकी बात कोई नहीं सुनता.... 'मेरी बात कोई नहीं मानता! कौन सुनेगा उसकी बात? __वास्तव में, जब दूसरों की बात चलती हो, तब बिना पूछे आपको बोलना नहीं चाहिए। वैसे, बात चलती हो व्यवसाय की, उस समय आपको घरेलू बात नहीं करनी चाहिए। बात चलती हो परिवार की उस समय व्यवसाय की बात नहीं करनी चाहिए | बात चलती हो मन्दिर की, उस समय साधु की बात नहीं करनी चाहिए, या दूसरी बातें नहीं करनी चाहिए।
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