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प्रवचन-४२ पुरुषों की प्रशंसा करनी होगी। शिष्टों की श्रेष्ठता को स्वीकार करना होगा और अपनी अधमता का इकरार करना होगा। व्यवहार में आप सभ्यता बनाये रखने का जितना खयाल करते हो, भीतर में शिष्टता बनाए रखने का भरसक प्रयत्न करते रहो। शिष्टता क्या है, अच्छी तरह समझ लो। ० दीन-दुःखी के उद्धार में दिलचश्पी शिष्टता है, : ० निन्दित कार्यों से डरना शिष्टता है, ० उपकारी के उपकारों को याद रखना शिष्टता है, ० निन्दा का त्याग शिष्टता है, ० सज्जनों की प्रशंसा करना शिष्टता है, ० आपत्ति में दीनता नहीं करना शिष्टता है ० और संपत्ति में नम्रता रखना भी शिष्टता है।
जब किसी व्यक्ति को आपत्ति में फँसा हआ देखो, आपत्ति में भी उसको अदीन-स्वस्थ देखो, आप उसकी अदीनता की स्वस्थता की मध्यस्थता की प्रशंसा करो। जब आप किसी व्यक्ति को संपत्ति के बीच भी नम्र देखो, आप उसकी प्रशंसा करो। चूंकि आपत्ति में दीन नहीं होना और संपत्ति में अभिमानी नहीं होना, बहुत बड़ी बात है, असाधारण बात है। इसलिए वह बात प्रशंसापात्र
है।
___ 'मैं आपत्ति में, दु:ख में, संकट में दीन नहीं बनूँ, मैं संपत्ति-वैभव में अभिमानी नहीं बनूँ...' ऐसे विचार आते हैं? ऐसी इच्छा होती है? टटोलो अपने आपको! यदि ऐसी इच्छा होती हो तो आप वैसे महापुरुषों की प्रशंसा करो। भूतकालीन महापुरुषों की प्रशंसा करो, वर्तमानकालीन ऐसे शिष्ट पुरुषों की प्रशंसा करो। आप के परिवार में ऐसा व्यक्ति हो तो उसकी भी प्रशंसा करो। आपके मित्रों में, स्नेहीस्वजनों में ऐसा व्यक्ति हो तो उसकी प्रशंसा करो। एक घटना पर सोचने का सही तरीका :
एक परिवार है, आप उस परिवार को जानते हो, परिवार बहुत सुखी था, लाखों रूपये थे, बंगला था, कार थी, परन्तु अचानक बड़ा नुकसान हो गया...बंगला बिक गया, कार भी बिक गई....संपत्ति चली गई। वे लोग एक
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