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प्रवचन-४२
२१२ नहीं! उसने निःसीम धीरता के साथ उस कुष्ठ रोगी युवक को अपने पति के रूप से स्वीकार कर लिया।
राजकुमारी को कुष्ठरोगी के साथ शादी करनी पड़े...यह कोई छोटी आफत है? यह कोई मामूली आपत्ति है? फिर भी मयणा ने कोई दीनता नहीं की। उसके मन में कोई अफसोस नहीं हुआ। यह प्रसंग सुनते-सुनते मयणा के अदीनभाव की प्रशंसा मन में होती है क्या? मयणा के प्रति प्रशंसा के गीत फूट पड़ते हैं क्या? तो मान लेना कि गृहस्थ जीवन का चौथा सामान्य धर्म आपमें आ गया है! आप सज्जनों की शिष्टता के प्रशंसक है। __ आपत्ति के समय सज्जनों को, दीनता नहीं आती, वे लोग आपत्ति को प्रसन्नता से स्वीकार लेते हैं। कुष्ठरोगी पति के साथ मयणासुन्दरी जब उज्जयिनी नगरी के राजमार्ग से गुजर रही थी तब नगरवासी लोग उसकी घोर निन्दा करते थे, उसके जैनधर्म की निन्दा करते थे। यह भी एक बड़ी आपत्ति थी। मयणासुन्दरी ने स्वनिन्दा सुन ली प्रसन्नता से | धर्मनिन्दा सुनकर उसे अवश्य दुःख हुआ और वह होना स्वाभाविक भी था। वह दुःख दीनता नहीं था, वह दुःख धर्मप्रेम में से पैदा हुआ था। आफत में स्वस्थता : शिष्टजनों का लक्षण :
श्री 'सिद्धचक्र' के आराधन से श्रीपाल का कुष्ठरोग दूर हो गया और लोग मयणासुन्दरी की प्रशंसा करने लगे। जैनधर्म की प्रशंसा करने लगे। मयणा के संकटों का अन्त आ गया....परन्तु श्रीपाल के जीवन में तो अनेक संकट आते रहें! श्रीपाल की विदेशयात्रा में अनेक संकट आये थे, परन्तु श्रीपाल कभी दीन नहीं बने। जिस धवल सेठ के जहाज में श्रीपाल ने विदेश यात्रा का प्रारंभ किया था, उसी धवल सेठ ने श्रीपाल को दुःख देने में कसर नहीं छोड़ी। श्रीपाल को मार डालने के भी प्रयत्न उसने किये थे! श्रीपाल की संपत्ति और श्रीपाल की पत्नियों को पा लेने के लिए धवल सेठने अनेक अधम उपाय किये थे फिर भी श्रीपाल दीन नहीं बने थे। 'आपत्ति में अदीनता, शिष्ट पुरुषों का एक लक्षण है। हमें भी उनके अदीनभाव के प्रशंसक बनना है तो अपन भी एक दिन वैसी अदीनता पा लेंगे। ___ संसार में ज्यादातर लोग आपत्ति में रोते हैं। दीन-हीन बनते हैं। यह बहुत बड़ा दोष है। ऐसे लोग कोई महान् कार्य नहीं कर सकते। ऐसे लोग कार्यसिद्धि नहीं कर सकते। चूँकि अच्छे कार्य में सैकडों विघ्न आते हैं।
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