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प्रवचन-४१ व्यक्ति उस व्यक्ति की बुराई कर सके वैसा एक भी बुरा काम उसके जीवन में नहीं है, तो मानना कि वह शिष्ट पुरुष है! शिष्ट पुरुष लोकनिन्दा के पात्र नहीं बनते! यह शिष्टपुरुष का पहला परिचय है। पहला लक्षण है! शिष्ट जन का लक्षण : निस्वार्थ सेवा : __ऐसे सज्जन पुरुषों को दीन-दुःखी निराधार मनुष्यों को सहायता पहुँचाने में रस होता है। ऐसे जीवों का उद्धार करने के लिए वे प्रयत्नशील होते हैं। शिष्ट पुरुषों का यह जीवनकार्य होता है। किसी भी प्रकार की 'पब्लिसिटी' के बिना, किसी प्रकार की स्पृहा के बिना वे सत्पुरुष दीन-दुःखी और त्रस्त जीवों के जीवन में खुशी, आनन्द और प्रसन्नता भर देते हैं। जीवन जीने के लिए आवश्यक-साधन-सामग्री प्रदान करते हैं और उनको स्वावलम्बी बना देते हैं।
जब आपको ऐसे कोई सत्पुरुष की ऐसी सत्प्रवृत्ति का खयाल आ जाय, आपके हृदय में खुशी उभर आये, आपके मुँह से प्रशंसा के शब्द निकल जायं....निर्दभ हृदय से आप उस सत्पुरुष की प्रवृत्ति का अनुमोदन करते हो तो समझना कि आप में चौथा सामान्य धर्म आ गया है।
सभा में से : ऐसी अनुमोदना तो हो जाती है!
महाराजश्री : अच्छा है यदि अनुमोदना करते हो तो! परन्तु किसी दूसरी बात को लेकर निन्दा तो नहीं करते हो न? जैसे : वह भाई दीन-दुःखी के उद्धार का कार्य तो अच्छा करते हैं... परन्तु मंदिर में पूजा करने नहीं आते अथवा उपाश्रय में प्रवचन सुनने नहीं आते...अथवा तपश्चर्या नहीं करते, ऐसीऐसी निन्दा तो नहीं करते हो न?
या फिर, ऐसे सत्पुरुष की प्रशंसा करता हुआ दूसरा व्यक्ति आपके पास आता है, जिसकी वह प्रशंसा करता है वह आपका कोई रिश्तेदार है...तो प्रशंसा सुनकर ईर्ष्या तो नहीं है न आपको? दूसरों की प्रशंसा सुनकर प्रसन्न होना-यह कोई मामूली गुण नहीं है, बहुत बड़ा गुण है। गुणवान् होना सरल है, गुणानुरागी बनना मुश्किल काम है। सभी गुणवान गुणानुरागी ही हों, ऐसा नियम नहीं है! गुणानुरागी और गुणप्रशंसक वही बन सकता है कि जो विनम्र होता है। स्वयं गुणवान होने पर भी जो अपने आपकी महत्ता नहीं चाहते, स्वयं की प्रशंसा सुनना नहीं चाहते! जो लोग स्वप्रशंसा के भूखे होते हैं, वे लोग प्रायः दूसरों की निदंभ हृदय से प्रशंसा नहीं कर सकते हैं, प्रशंसा सुन भी नहीं सकते हैं।
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