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प्रवचन- ४१
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क्षुद्र आदमी को ही स्वप्रशंसा अच्छी लगती है :
स्वप्रशंसा करना और सुनना क्षुद्र जीवों को बहुत पसन्द होता है । दूसरे सत्पुरुषों की प्रशंसा वे कर ही नहीं सकते । सुन भी नहीं सकते। ऐसे लोग गृहस्थजीवन को धर्ममय नहीं बना सकते, गृहस्थ जीवन को सुशोभित नहीं कर सकते। इसलिए कहता हूँ कि गृहस्थजीवन में इन सामान्य धर्मों को स्थान दो। सामान्य धर्मों से जीवन को भर दो, सुवासित बना दो । शिष्ट पुरुषों के सदाचरणों की हार्दिक प्रशंसा करने से सदाचरण आपके जीवन में भी आयेंगे और आप भी शिष्टपुरुष बन जाओगे ! शिष्ट बनना तो है न ? श्रीमंत बनने की धुन में शिष्ट बनने की बात शायद भूल गये होंगे !
श्रीपाल श्रेष्ठ शिष्ट पुरुष :
प्राचीन काल के अनेक रोचक और बोधक उदाहरणों में मुझे श्रीपाल का उदाहरण शिष्टता की दृष्टि से श्रेष्ठ प्रतीत होता है। श्रीपाल शिष्ट श्रेष्ठ महापुरुष थे। आपको जानकर बड़ा आश्चर्य होगा... कि श्रीपाल अपनी पत्नी मयणा सुन्दरी के परिचय से विशुद्ध शिक्षा पाये थे । मयणासुन्दरी का सम्यक्दर्शन उज्ज्वल था। उसके पास सम्यक्दर्शन का प्रकाश था... और सम्यक्चारित्र का सुचारू पालन था। राजसभा में मयणासुन्दरी ने कुष्ठरोगी श्रीपाल को पति के रूप में स्वीकार कर लिया था । पिता राजा थे, पिता के आह्वान को सहजता से झेल लिया था। श्रीपाल भी एक राज्य के राजकुमार ही थे परन्तु प्रकट नहीं थे, प्रच्छन्न थे। मयणा के साहस से ज्ञानदृष्टि से और अनेक मूल्यवान गुणों से श्रीपाल प्रभावित हुए थे। जब मयणा ने 'श्री सिद्धचक्र महायंत्र' की आराधना-उपासना से श्रीपाल का कुष्ठ रोग दूर कर दिया, तब तो श्रीपाल खुशी से झूम उठे थे । श्रीपाल के हृदय में श्री सिद्धचक्रजी की तो प्रतिष्ठा हो गई, मयणासुन्दरी की भी प्रतिष्ठा हो गई, प्रेरणामूर्ति के रूप में! आदर्श की प्रतिमा के रूप में ।
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इस 'धर्मबिन्दु' ग्रन्थ में शिष्टपुरुष के जितने सदाचरण बताये गये हैं वे सभी सदाचरण श्रीपाल के जीवन में पाये जाते हैं! उन्नीस प्रकार के सदाचार यहाँ बताये गये हैं, वे सभी श्रीपाल के जीवन में देखने को मिलते हैं, इसलिए मैं श्रीपाल का हमेशा प्रशंसक रहा हूँ, उनके जीवन की हर घटना में, हर प्रसंग में उनकी श्रेष्ठ शिष्टता के मैंने दर्शन किये हैं । श्रीपाल की कहानी की रोचकता तो है ही, परन्तु मैं कहानी की दृष्टि से बात नहीं कर रहा हूँ। उनके