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प्रवचन-४१
२०० कुष्ठरोगियों का समुह था! रानी ने आँखों में आंसुओं के साथ दो हाथ जोड़कर उन लोगों को प्रार्थना की : आप लोग दयालु दिखते हो, मेरे पुत्र की रक्षा करोगे? सुनिये, घुड़सवारों की आवाज आ रही है, वे लोग मेरे पुत्र को मार डालेंगे।' रानी ने संक्षेप में अपनी बात बता दी। कुष्ठ रोगी के मुखिये ने कहाः 'मेरे भाई, आप रख लो बच्चे को, उसको कुष्ठरोग होगा तो मैं औषधोपचार से ठीक करवा दूंगी, उसके प्राणों की रक्षा करना अनिवार्य है। मैं यहाँ से चली जाती हूँ, बच्चे को आप छिपा लो।'
रानी ने श्रीपाल को सौंप दिया कुष्ठ रोगियों के हाथ में और स्वयं तीव्र गति से जंगल में अदृश्य हो गई। कुष्ठरोगियों ने श्रीपाल को अपने डेरे में ऐसे छिपा दिया कि सैनिक उसको देख ही न सके । सैनिक आये और पूछाः 'तुम लोगों ने यहाँ से एक औरत को बच्चे के साथ जाते हुए देखा? किस ओर गई है?' कुष्ठरोगियों ने कहा : 'हमें पता नहीं।' सैनिक को कुछ वहम आया, पूछा : 'तुम लोगों ने तो उस औरत को छिपाया नहीं है न?' 'हम लोग क्यों छिपायें? हमने देखा भी नहीं।' सैनिक ने गुस्से में आकर कहा : 'हम लोग तुम्हारा डेरा देखेंगे, यदि मिल गई औरत तो तुम सब को यमलोक पहुँचा देंगे।' ___ 'अरे भगवान! आप हमारा डेरा देख सकते हो परन्तु ध्यान रखना कि हम सब कुष्टरोगी हैं, हमारे स्पर्श से आप लोग भी कुष्ठरोगी बन जाओगे! आपकी इच्छा हो तो देख लो!' सैनिक घबराये! उन्होंने देखा कि ये कुष्ठरोगी सैंकड़ों की तादाद में हैं और वे सैनिक थे चार-पांच । यदि बीस-पच्चीस भी कुष्ठरोगी सैनिक को चिपक जायँ तो काम पूरा हो जाये । सैनिक घबराये और वहाँ से भाग गये। श्रीपाल सुरक्षित रह गया। कई वर्षों तक उन कुष्ठरोगियों ने श्रीपाल की रक्षा की। जब श्रीपाल यौवन में आये तब उनके पूरे शरीर में कुष्ठरोग व्याप्त हो गया था। साथियों ने उनको अपना राजा बनाया था और गाँव-नगर में फिरते रहते थे।
श्रीपाल नीरोगी बने कि तुरंत ही अपने उन साथियों को भी नीरोगी बनाने का सोचा! मयणासुन्दरी को बात कही। मयणासुन्दरी ने श्री सिद्धचक्रजी का स्मरण करके, जिस स्नात्रजल से श्रीपाल नीरोगी बने थे, उसी स्नात्रजल से उन सातसौ कुष्ठरोगियों को नीरोगी बना दिया ।
इस घटना में से दो बातें पायी जाती हैं। दीन-दुःखी के प्रति अपार करूणा और कृतज्ञता! अपने उपकारियों के उपकार नहीं भूलना और उपकार का
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