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प्रवचन-४०
१९३ पथ्य का पालन अनिवार्य :
आज चौथा जीवनधर्म बताना है। वह है शिष्टपुरुषों के चरित्र की प्रशंसा!
यह है वाचिक जीवन धर्म। किसी की निन्दा नहीं करना, शिष्टपुरुषों के पवित्र आचरण की प्रशंसा करना! शिष्टपुरुषों के चरित्र की प्रशंसा करने की ही! अशिष्ट-अभद्र पुरुषों की निन्दा नहीं करने की और शिष्ट-भद्र पुरुषों की प्रशंसा करने की! कितनी महत्वपूर्ण बात बता रहे हैं ग्रन्थकार महर्षि! शरीर को हानि पहुँचाने वाले पदार्थ नहीं खाने मात्र से काम नहीं बनता, कुपथ्य का त्याग करना जैसे आवश्यक है वैसे पथ्य का सेवन भी अनिवार्य होता है। रोगों से बचने के लिए कुपथ्य का त्याग आवश्यक है वैसे शारीरिक शक्ति के लिये पथ्यसेवन भी अनिवार्य है। बुराइयों से बचने के लिए निन्दा का त्याग आवश्यक है वैसे अच्छाइयों का उपार्जन करने के लिए 'प्रशंसा' करना अनिवार्य है! अपनी स्वयं की प्रशंसा नहीं, वरन् शिष्टपुरुषों की प्रशंसा । गुणात्मक एवं क्रियात्मक : दो प्रकार का चरित्र :
शिष्ट पुरुषों के अलावा किसी की भी प्रशंसा करने की है! यानी वार्तालाप में विषय होने चाहिए शिष्टपुरुषों के चरित्र! ये चरित्र होते हैं गुणात्मक और क्रियात्मक । शिष्टपुरुषों के गुणों की प्रशंसा और उनके सदाचारों की प्रशंसा । जब किसी से वार्तालाप करने का प्रसंग न हो तब मौन धारण करने का!
सभा में से : शिष्ट पुरुष किसको कहते हैं?
महाराजश्री : जो पुरुष, व्रतधारी और ज्ञानवृद्ध महापुरुषों के परिचय में रहते हैं और उनसे विशुद्ध शिक्षा पाये हुए होते हैं, वे पुरुष शिष्ट कहलाते हैं। परिचय होना चाहिए व्रतस्थ और आत्मज्ञानी महापुरुषों का। वह परिचय मात्र नाम-रूप का नहीं, मात्र बाह्य उपचार नहीं, परन्तु निर्मल....निष्काम हृदय का परिचय! उस परिचय से आत्मज्ञान की प्राप्ति होनी चाहिए। जीवन धर्ममय बनना चाहिए | अनेक विशिष्ट गुणों की उपलब्धि होनी चाहिए | यह सब जब होता है, तब मनुष्य में शिष्टता आती है। __ हालाँकि यह चौथा सामान्य धर्म शिष्ट बनने की बात नहीं करता है, शिष्टपुरुषों के प्रशंसक बनने को कहता है। शिष्टता प्राप्त हो जाय तो बहुत ही अच्छा! परन्तु प्राथमिक अवस्था में शिष्टता प्राप्त करना मुश्किल तो है ही। हाँ, शिष्टपुरुषों के प्रशंसक अवश्य बन सकते हैं।
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