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प्रवचन-४०
१९१ गेहूँ मिल जायें वैसा मार्गदर्शन दिया था! पशु का खून तो मनुष्य की नब्ज में बहता ही होता है। जब तक आवश्यकतानुसार खुराक मिलती रहती है तब तक पशु का खून काबू में रहता है। जब आवश्यकता से ज्यादा वस्तु मिलने लगती है तब बेकाबू बन जाता है वह पशु का खून! मेरा काम तो इतना ही था कि मैंने किसान को मद्यपान का स्वाद करा दिया। उसने गेहूं में से शराब बनायी....और उसकी नब्जों में सियार, भेड़िये और सुअर का खून दौड़ने लगा। यदि वह मद्यपान में डूबा रहेगा तो उसकी पाशविकता कायम रहेगी।' ___ मद्यपान के विषय में यह कहानी सब कुछ कह देती है। विशेष रूप से कहूँ तो मद्यपान करने वाले लोग मात्र इस जीवन में ही पशुता का जीवन जीते हैं इतना ही नहीं, परलोक में भी उनको पशुता ही प्राप्त होती है...आगे के जीवन में नारकीय वेदनायें सहन करनी पड़ती हैं। शराब और मांसाहार को दूर से ही सलाम कर दो : । प्रत्यक्ष और परोक्ष, इहलौकिक और पारलौकिक संकटों से, उपद्रवों से बचे रहने के लिए इन पाँच अनिष्टों को जीवन में प्रवेश मत दो। शान्ति से, प्रसन्नता से, पवित्रता से जीवन व्यतीत करना चाहते हो, निश्चित और निर्भय बनकर आत्मशुद्धि का पुरुषार्थ करना चाहते हो, तो इन पाँच पापों की परछाँई भी मत लो। ऐसे स्थानों में जाओ ही मत कि जहाँ ऐसे पाप होते रहते हों। ऐसे मित्रों का त्याग कर दो कि जो इन पापों का आचरण करते हों। ऐसा साहित्य मत पढ़ो कि जिस साहित्य में इन पापों की कर्तव्यता बतायी जाती हो। दृढ़ संकल्पबल से इन पापों से बचते रहो। इस विषय को आज पूर्ण करता हूँ। कल से चौथे सामान्य धर्म की विवेचना शुरू करूँगा।
आज बस, इतना ही।
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