________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रवचन-३०
७३ तो एक आदमी बेहोश पड़ा है। दोनों ने उसको नीचे उतारा । उसको होश में लाये। पूछा : 'तुम कौन हो? हमारी ट्रक में कहाँ से गिरे?'.... बहुत प्रश्न किये। दलाल ने कहा : 'भाई साहब, मैं आपको सारी बात बताऊँगा, पहले मुझे मेरे बाजार में जाने दो, मेरा काम निपटाकर अभी मैं आता हूँ।'
दलाल गया सीधा जौहरी बाजार में | संध्या हो गई थी। जिस व्यापारी का माल था, उसको जाकर माल दे दिया और कहा : 'आप अपना माल देख लें, मैं इस माल को नहीं बेच सकता।'
वह पारसी बाबा भी उसके साथ आये थे। दलाल ने उस जौहरी और पारसी बाबा के सामने जब सारी घटना सुनायी....जौहरी और पारसी बाबा हक्के-बक्के से रह गये। दलाल ने पारसी बाबा का बड़ा उपकार माना। 'यदि आपकी ट्रक में नहीं गिरता तो मैं वहीं पर ही मर जाता...' पारसी बाबा ने कहा : 'भाई, भगवान ने तुम्हें सहायता की है! भगवान का उपकार मानो!' जौहरी ने कहा : 'तुम्हारी नीतिमत्ता और न्यायपरायणता की यह जीत है। तुम्हारे न्यायधर्म ने, नीतिधर्म ने तुम्हें बचा लिया।' न्यायशीलता से निर्भयता आती ही है :
न्याय और नीति पर विश्वास होगा आप लोगों को? ग्रन्थकार महर्षि ने तो धनप्राप्ति का उपाय ही बताया है न्याय को! नीति को! आप धीरता से न्यायनीति के मार्ग पर चलते रहो, आपको अवश्य धनप्राप्ति होगी। हाँ, जल्दबाजी मत करना । न्याय-नीति के साथ आपका भाग्य भी चाहिएगा न? 'लाभान्तराय' कर्म का क्षयोपशम भी चाहिएगा। अलबत्ता, न्याय-नीति से लाभान्तराय कर्म टूटेगा जरूर, परन्तु समय लग सकता है। देर हो सकती है, अन्धेर नहीं है। __ अर्थप्राप्ति के विषय में ज्ञानी पुरुषों ने कितना सम्यक मार्गदर्शन दिया है? अर्थपुरुषार्थ को गृहस्थजीवन का मान्य धर्म बनाने के लिए न्यायसंपन्नता का आदर करना नितान्त आवश्यक है। चित्तशान्ति और भीतरी आनन्द के लिए भी न्यायसंपन्नता बहुत ही आवश्यक है। न्यायसंपन्नता से आप निर्भय बने रहेंगे। निर्भयता बहुत बड़ा सुख है।
न्यायपरायणता से 'लाभान्तराय' कर्म का नाश कैसे होता है, यह आगे बताऊँगा।
आज बस, इतना ही।
For Private And Personal Use Only