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प्रवचन-३६
१४३ व्यक्तित्व का नाश कर दिया है। आधुनिक शिक्षा ने स्त्री का निःस्वार्थ पत्नी का रूप खंडित कर दिया है। आप लोगों को अनुभव है या नहीं? व्यक्तिगत परिवर्तन हो सकता है : __ मैं यह नहीं कहता कि छोटी उम्र में ही शादी करनी चाहिए | मेरा कहना यह है कि शादी से पूर्व स्त्री का ब्रह्मचर्य अखंड रहना चाहिए। पुरुष को भी शादी से पूर्व ब्रह्मचारी ही रहना चाहिए। शादी के बाद शादी के आदर्शों का पालन करना चाहिए | सामाजिक व्यवस्था इस प्रकार की होनी चाहिए | मैं जानता हूँ और मानता हूँ कि आज यह परिवर्तन होना असंभव-सा है, फिर भी कोई परिवार, कोई व्यक्ति यदि हिम्मत से ऐसा परिवर्तन करना चाहे तो कर सकता है। उसे कोई रोक नहीं सकता। अच्छा परिवर्तन करने के लिए हिम्मत चाहिए, सत्त्व चाहिए, अपनी बात को सिद्ध करने की बुद्धि चाहिए | लड़कियों को कालेज की शिक्षा देना जरूरी नहीं है :
मेरी राय में तो लड़कियों को कालेज में भेजना ही नहीं चाहिए | यदि आप अपनी लड़कियों का जीवन शान्तिमय बनाना चाहते हो तो! ___ सभा में से : यदि लड़कियों को कालेज की पढ़ाई नहीं कराते हैं तो उनसे शादी करनेवाले लड़के नहीं मिलते हैं। ___ महाराजश्री : आपके लड़के भी हैं न? आप अपने लड़के के लिए, जो लड़की कालेज में गई नहीं हो, वैसी लड़की पसन्द करें। आप अपने लड़के के लिए, कालेज पास की हुई लड़की का आग्रह छोड़ दें....तो आपकी लड़की को भी लेनेवाले लड़के मिल जायेंगे! उसमें दूसरी योग्यताओं का अच्छा विकास करते रहें। गुणवान और शीलवान कन्या कभी भी दुःखी नहीं होगी। यदि कोई पापकर्म से दुःख आयेगा तो भी समता से दुःख सहन करेगी परन्तु अपनी चित्तशान्ति को अखंड रखेगी।
लड़के और लड़कियों को जो शिक्षा दी जाये, उस शिक्षा का लक्ष्यबिन्दु यही होना चाहिए कि वह दुःखों में दीन न हो, सुखों में लीन न हो। इस केन्द्रबिन्दु के आसपास शिक्षा का प्रसार होना चाहिए। जीवन की सफलता के ये दो मुख्य तत्त्व हैं।
दुःख में दीन नहीं होना, सुख में लीन नहीं होना।
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