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प्रवचन-३६
१. ब्राह्म-विवाह : कन्या को वस्त्रालंकारों से सजाकर वर को सौंपा जाये, सौंपते समय कन्यादान करनेवाले कन्या को कहे कि : 'तू इस महाभाग पुरुष की सहधर्मचारिणी बन ।' ऐसा कहते हुए जो विवाह किया जाय उसे 'ब्राह्मविवाह' कहते हैं। ___ शादी के बाद स्त्री को अपने पति के साथ जीवन व्यतीत करना होता है। जब पत्नी पति को पूर्ण समर्पित हो जाती है तभी वह सहधर्मचारिणी बन सकती है। पति के पदचिह्नों पर चलनेवाली बनती है। पति के सुख-दुःख में सहभागी बन सकती है। कन्या को शादी के समय जो आशीर्वचन दिया जाता है वह ब्राह्म-विवाह में, दाम्पत्य जीवन की चाबी है।
२. प्राजापत्य-विवाह : जब कन्या का पिता कन्या को धन-वैभव के साथ दामाद को कन्यादान देता है तब 'प्राजापत्य-विवाह' कहलाता है। दामाद माँगे या नहीं माँगे, कन्या का पिता अपनी इच्छा से धन प्रदान करता है। अपनी पुत्री के प्रति स्नेह होने से संपन्न पिता लड़की को धन-वैभव दे, यह स्वाभाविक है।
३. आर्ष-विवाह : कन्यादान के साथ साथ कन्या का पिता दो गायों का भी दान दे, उसको 'आर्ष-विवाह' कहते हैं।
४. दैव-विवाह : विवाह के समय जो यज्ञ किया जाता है, वह यज्ञ करने वाले ब्राह्मण को कन्या ही दक्षिणा के रूप में दी जाये यानी उस याज्ञिक के साथ ही कन्या का विवाह किया जाये उसको 'दैव-विवाह' कहते हैं |
ये चार प्रकार के विवाह माता-पिता की अनुमति से होते हैं, इसलिए और इन विवाहों में स्त्री-पुरुष के जीवन में गृहस्थोचित देवपूजा वगैरह धार्मिक कर्तव्यों का पालन सरलता से हो सकता है। इसलिए इन विवाहों को धर्मशास्त्रों ने प्रामाणित माना है। अब शेष चार विवाह जो बताता हूँ वे विवाह शास्त्रसंमत नहीं हैं, परन्तु होते थे.... इसलिए बताये गये हैं।
५. गांधर्व-विवाह : स्त्री-पुरुष परस्पर प्रेम हो जाने से शादी कर लें, उस को 'गांधर्व-विवाह' कहते हैं। आज की भाषा में 'लव-मेरेज' यानी 'प्रेमविवाह' कह सकते हैं।
६. आसुर-विवाह : किसी प्रकार की सौदाबाजी करके कन्या दी जाये, उसको 'आसुर-विवाह' कहते हैं। कन्याविक्रय इस प्रकार में आ सकता है।
७. राक्षस-विवाह : कन्या का अपहरण कर, बलात् उसके साथ शादी की जाये, उसको 'राक्षस-विवाह' कहते हैं।
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