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प्रवचन-३८
___१६० लिया। शाम को जब सेठ भोजन करने बैठे, भोजन करके उन्होंने सेठानी से कहा - 'मेरा मन पुत्र की मौत के बाद अब इस शहर में, इस हवेली में नहीं लगता है। व्यापार में भी मन नहीं लगता है। मैंने सोचा है कि अपन अपने छोटे गाँव में चले जायँ और शेष जीवन वहीं बितायें! तुम्हारी क्या राय है?' सेठ की बात पुत्रवधू भी सुन रही है। सेठानी ने कहा : 'बात तो आपकी सही है, लड़के की मृत्यु के बाद मेरा मन भी उदास रहता है...अपने छोटे गाँव में जाना मुझे भी पसन्द आयेगा।'
सेठ ने कहा : 'तो ऐसा करो कि कल प्रातः ही तुम पुत्रवधू को लेकर गाँव चली जाओ। नौकरों को भी साथ ले जाना, आवश्यक सामग्री भी ले जाओ, मैं दो दिन में दुकान का काम निपटाकर आ जाऊँगा। कल का मुहूर्त अच्छा है गाँव जाने के लिए।' सेठानी ने स्वीकृति दे दी। पुत्रवधू को आश्चर्य तो हुआ कि अचानक ससुर ने ऐसा निर्णय क्यों लिया.... परन्तु वह यह भी जानती थी कि उसके सास-ससुर को पुत्र-मृत्यु का आघात प्रबल लगा था। पुत्र की मृत्यु के बाद वे लोग सादगी से रहते थे, मिष्टान्न का भी त्याग कर दिया था, अच्छे वस्त्र पहनने भी छोड़ दिये थे। उनके मुख पर उदासी छायी रहती थी। वह जब अपने कमरे में पहुँची तो वह दासी वहाँ खड़ी थी। दासी ने कहा 'उस युवक ने कहा है कि दो दिन के बाद वह आयेगा....।' पुत्रवधू मौन रही और अपने पलंग पर जा गिरी। दासी वहाँ से चली गई।
सेठानी ने पुत्रवधू के पास आकर कहा - बेटी, कल अपन यहाँ से अपने छोटे गाँव चलेंगे, सो तैयारी करनी है। चलो मेरे साथ, अपन मिल कर तैयारी करें। पुत्रवधू सास के साथ चली गई और आधी रात तक तैयारी करती रही। प्रातःकाल गाड़ी में बैठकर सेठानी पुत्रवधू के साथ वहाँ से अपने गाँव चल पड़ी। सेठ का मन शान्त हुआ। गाँव में जाकर क्या करना है वह भी सेठ ने सोच लिया था।
दो दिन में दुकान का काम निपटा कर, मुनिमों को दुकान सँभला कर सेठ भी पहुँच गये अपने वतन के गाँव में| यहाँ घर था, खेत थे, बाड़ी थी। सेठ ने सेठानी से कहा - 'मैंने सोचा है कि यहाँ अपन कुछ गायों और भैंसों को रख लें...छोटा-सा गोकुल बसा लें....! अपने खेत हैं इसलिए घास के पैसे लगेंगे नहीं और आमदनी भी अच्छी होगी...।' ___ सेठानी ने कुछ सोचकर कहा - 'परन्तु गोकुल का काम बहुत रहता है...मेरी अकेली से....।'
'तुम अकेली कहाँ हो? तुम्हारी पुत्रवधू साथ है। आधा काम तो वह
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