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प्रवचन-३८ आता तब जाकर उसको कुछ शान्ति मिलती। परन्तु परिणाम यह आता कि उस स्त्री का मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ने लगा। शरीर पर भी असर होने लगा। उसने कहा - 'मैं यहाँ नहीं रह सकती, मुझे अपने घर भेज दो, वहाँ आपके माता-पिता के साथ मैं रहूँगी। यहाँ पर तो मैं पागल बन जाऊँगी।'
यह परिस्थिति कोई एक-दो परिवारों की है ऐसा मत सोचना, यह परिस्थिति व्यापक बन गई है। शादी के बाद या तो पुत्र अलग रहना चाहता है अथवा पुत्रवधू का आग्रह होता है अलग रहने का | या तो लड़के को अपने माता-पिता के साथ रहना पसन्द नहीं होता या तो पुत्रवधू को सास-ससुर के साथ रहना नहीं सुहाता! अलग हो जाते हैं। पति की अनुपस्थिति में युवान पत्नी अकेली घर में रह जाती है....क्या उसको अकेलापन पसन्द आयेगा? न किसी से बोलना, न किसी से बात करना। वह आसपास के घरों से संबंध रखेगी। वह उनके घर जायेगी, वे लोग उसके घर आयेंगे, सम्बन्ध का प्रारम्भ महिलाओं से होगा.... धीरे-धीरे पुरुषों से होने लगेगा। पुरुषों से बातें करेगी, हँसेगी...घर पर बुलाकर चाय-नास्ता करवायेगी, परिचय बढ़ता जायेगा। दोपहर को फिर परिचित पुरुष के साथ सिनेमा देखने जाया करेगी... परिणाम क्या आता है? वह महिला अपने पति को धोखा देगी। परपुरुष से शारीरिक संबंध बाँध लेगी... यदि उसके पति को इस संबंध का ख्याल आ जायेगा तो वह पत्नी को मारेगा। उस पुरुष के साथ वैर बंध जायेगा। संभव है कि किसी की कोई हत्या भी कर दे! आजकल देश और दुनिया में यह सब हो रहा है। संयुक्त परिवार की जीवन-पद्धति टूटती जा रही है। युवान पुत्रपुत्रवधुओं को परिवार के साथ रहना पसन्द नहीं आता है। अलग हो जाते हैं और अनेक बाह्य-आन्तरिक नुकसान मोल लेते हैं। शादीशुदा पुत्र का अपमान मत करो :
युवान कुलवधू को माता समान प्रौढ़ महिलाओं के साथ रखने की बात बड़ी महत्त्वपूर्ण है। कुलवधू को सास की ओर से माता जैसा और ससुर की
ओर से पिता जैसा वात्सल्य मिलना चाहिए। यदि ऐसा वात्सल्य मिले तो पुत्रवधू अलग रहने को प्रायः तैयार ही नहीं होगी । पुत्र का भी घर में यथोचित स्थान होना चाहिए। बड़े पुत्रों का दूसरे लोगों के सामने, पुत्रवधू के सामने अपमान नहीं होना चाहिए। माता-पिता को अपने पुत्रों के साथ सौजन्यपूर्ण व्यवहार करना चाहिए। विशेष कार्यों में पुत्रों के साथ परामर्श करना चाहिए। पुत्रों की बात उचित हो तो स्वीकार करना चाहिए | माता-पिता के हृदय में पुत्र
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