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प्रवचन-३९
१७९ अपनी कामवासना पूर्ण करने का साधन मानती थी। राजा से संतोष नहीं होता होगा...इसलिए ललितांग को बुलाया होगा। ललितांग गटर में चला जाय या मर जाय, रानी को कोई अफसोस नहीं था । ललितांग से सुख नहीं मिला तो दूसरा कोई पुरुष मिलेगा। विकारी स्त्री-पुरुष के हृदय में कभी निर्मल प्रेमस्नेह हो नहीं सकता।
परस्त्री में लंपट बने ललितांग की कैसी दुर्गति हुई? रानी का सुख तो दूर रहा, घोर आपत्ति में फँस गया। ललितांग गटर में उतर गया और गटर में बहता रहा....बेहोश हो गया था....कई दिनों तक बेहोशी में बहता रहा.... सड़ता रहा। उसके पिता ने पुत्र की सारे नगर में तलाश करवाई। माँ रोती है। पुत्र को खोजने के लिए आकाश-पाताल एक कर दिये सेठ ने... परन्तु पुत्र नहीं मिला.... तब सेठ अत्यंत निराश हो गये।
कुछ दिनों के बाद ललितांग गटर में बहता हुआ गाँव के बाहर निकला....शरीर सड़ गया है....निश्चेतन अवस्था में पड़ा है। वहाँ से गुजरने वाले कुछ लोगों ने उस शरीर को देखा | गाँव में बात फैली कि गाँव के बाहर गटर में किसी मनुष्य का मृतदेह सड़ा हुआ पड़ा है। सुनकर अनेक लोग देखने के लिए पहुंचे वहाँ । सभी ने उस शरीर को देखा परन्तु कोई पहचान नहीं पाया कि यह ललितांग है। जब सेठ ने बात सुनी, सेठ दौड़ते हुए वहाँ पहुँचे। उन्होंने अपने नौकरों से उस देह को गटर से बाहर निकलवाया, पानी से साफ करवाया तब वे पहचान गये कि यह ललितांग है। शीघ्र ही सेठ ने वैद्य को बुलाकर जाँच करवायी कि पुत्र जिंदा है या मर गया है। वैद्य ने शरीर को अच्छी तरह से देखा और कहा कि 'लड़का जिंदा है।' सेठ तुरन्त ही ललितांग को घर ले गये। दीर्घ समय तक औषधोपचार किये तब जाकर ललितांग स्वस्थ और निरोगी हुआ।
यदि जीवन को निरुपद्रवी बनाये रखना है, निर्भय और निश्चित जीवन जीना है तो १. अन्यायपूर्ण व्यवहार का त्याग करो २. जुआ खेलना बंद करो ३. परस्त्री का पाप छोड़ दो। आज ये तीन बातें बतायी हैं, शेष दो बातें आगे बताऊँगा, आज बस इतना ही!
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