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प्रवचन - ४०
१८८
उठा ले गया था ! वह देखना चाहता था कि किसान अपनी रोटी खोजने के लिए क्या करता है। वह मानता था कि 'किसान अवश्य गुस्से होगा, गालियाँ बकेगा और मुझे याद करेगा!'
किसान को रोटी नहीं मिलने से दुःख तो हुआ परन्तु उसने धैर्य से काम लिया। उसने अपने आप से कहा : 'जो होना था हो गया, एक रोटी नहीं खाने से मैं मर जाऊंगा नहीं, जो कोई मेरी रोटी ले गया होगा, उसको मुझसे ज्यादा आवश्यकता होगी... भगवान उसकी आवश्यकता पूर्ण करें!' ऐसा बोलकर किसान अपने कुए पर गया, पेट भर के पानी पिया, विश्राम किया और पुनः खेती के काम में जुट गया ।
शैतान के दूत को भारी दुःख हुआ । उसका दाव निष्फल गया था। वह किसान को पाप से मलिन नहीं कर सका । वह वहाँ से शैतान के पास गया। शैतान को उसने किसान की बात कह सुनायी । शैतान अत्यन्त बेचैन हो गया और बोला : 'यदि उस किसान ने तुझ पर विजय पा ली है तो तेरा ही दोष है, तुझे काम करना नहीं आता है। यदि सभी किसान और उनकी पत्नियाँ इस प्रकार व्यवहार करते रहेंगे तो अपना नामोनिशान साफ हो जायेगा । अपन को बड़ी गंभीरता से सोचना पड़ेगा। जाओ, तीन साल का समय देता हूँ । तीन वर्ष यदि तूने किसान को वश में कर लिया तो तुझे उत्तम बक्सीस दी जायेगी, तेरी पदोन्नति की जायेगी । '
दूत शैतान की आज्ञा पाकर पुनः इस धरती पर आया । किसान को अपने वश करने के अनेक उपाय वह सोचने लगा । एक युक्ति उसके दिमाग में आई, वह हर्षित हो गया। उसने मज़दूर का वेश धारण किया और किसान के वहाँ नौकरी कर ली।
पहले वर्ष शैतान के दूत ने किसान को राय दी वह गेहूं खेत में नहीं, परन्तु खेत के निम्न भाग में ढलान में बोये । किसान ने उसी प्रकार गेहूं के बीज बो दिये। उस वर्ष वर्षा नहीं होने से दूसरे किसानों की फसल धूप में जल गई जबकि इस किसान को बहुत अच्छी फसल मिली। आवश्यकता से ज्यादा गेहूँ मिले ।
दूसरे वर्ष शैतान के दूत ने राय दी कि इस वर्ष गेहूं पहाड़ी धरती पर ही बोने चाहिए। इस वर्ष अतिवृष्टि होने से खेतों में पानी भर गया और फसल नष्ट हो गई, परन्तु पहाड़ी पर बहुत अच्छी फसल मिली। गेहूं का पहाड़ी-सा हो गया। किसान को चिन्ता हुई कि इतने सारे गेहूं का क्या करना चाहिए ।
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