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प्रवचन-४०
१८४ राजा बन गया। सत्ताधीश बन गया। पुरोहितपुत्र की भी पदोन्नति हो गई। उसने धीरे-धीरे सोदास के भोजन में प्रच्छन्न रूप से माँस की मिलावट करवानी शुरू की। रसोइघर के रसोइये को स्वर्णमुद्राएं देकर चुप कर दिया गया था। मांसमिश्रित भोजन सोदास को बड़ा प्रिय लगा। उसने रसोइये को कहा : 'आजकल भोजन बहुत ही अच्छा बन रहा है....क्या कारण है? अद्भुत स्वाद का अनुभव हो रहा है।' आनंद ने सोदास को मांसाहारी बना डाला : ___ मित्र और रसोइया दोनों हंसने लगे। पुरोहितपुत्र सोदास के साथ ही भोजन करता था। सोदास ने मित्र से पूछा : 'आनंद, क्या बात है? क्यों तुम दोनों हंसते हो?' आनन्द ने कहा बाद में बताऊँगा....! आनन्द ने अभय का वचन लेकर सोदास को बताया कि 'भोजन मांसमिश्रित बन रहा है।' सोदास नाराज तो हुआ.... परन्तु आनन्द ने प्रेम से समझाया.... तब वह शान्त हो गया, मांसभक्षण करने के लिए सहमत भी हो गया।
प्रथम तीर्थंकर परमात्मा ऋषभदेव से ही अयोध्या की राजपरम्परा अहिंसाप्रधान संस्कृति का स्वीकार करती आयी थी। अयोध्या के राजा निरामिष आहारी थे। प्रजा में भी मांसाहार वर्ण्य माना जाता था। ऐसे वातावरण में प्रकटरूप से मांसाहार करना राजा के लिए भी सरल नहीं था। राजाओं को भी संस्कृति का अनुकरण करना आवश्यक था। प्रजा की धर्मभावना का खयाल करना जरूरी था।
सोदास मांसभक्षी बन गया । अब मित्र आनन्द मांसाहार के लिए पशुओं की कत्ल करवाने लगा। एक दिन जब कहीं से भी मांस नहीं मिला तो उसका रसोइया मृत बच्चे का कलेवर उठा लाया और राजा को नरमांस का भोजन खिला दिया। राजा को नरमांस का भोजन ज्यादा रसभरपूर लगा। अब उसने नरमांस का भोजन प्रतिदिन बनाने की आज्ञा दी। नगर में प्रतिदिन एक बच्चे की चोरी होने लगी, अपहरण होने लगा | महाजन और मंत्रीमंडल चिन्तामग्न बना। गुप्तचरों ने अपहरण करने वाले को पकड़ लिया....और पाप का भंडा फूट गया। ___ मंत्रीमंडल ने सोदास को पदभ्रष्ट किया, राजकुमार सिंहस्थ का राज्याभिषेक कर दिया। सोदास जंगल में चला गया। उसका मित्र तो कभी का जंगल में भाग गया था। नरभक्षी सोदास हाथ में तलवार लिए, जंगल में भटकता है, जहाँ कहीं किसी अकेले बच्चे को या किशोर को देखता है, हत्या कर देता है और खाने लगता है।
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