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प्रवचन- ३९
१७४
के बन्धन से ड़रते हो तो बात है । परन्तु अज्ञानी जीवों को पापकर्म बांधते समय विचार नहीं आता है कि जब इन कर्मों का उदय आयेगा तब कैसे भयानक दुःख आयेंगे। कैसी घोर वेदनायें अनुभव करनी पड़ेंगी। लालच बड़ी खतरनाक होती है :
जब कोई मित्र अथवा स्नेहीजन जो कि जुआ खेलने पर कुछ रुपये कमाया हो, आपके पास आकर बात करे कि 'क्यों इतनी मजदूरी करते हो, मजदूरी करने से जिंदगी में कभी लखपति नहीं बन सकोगे, कभी बंगला नहीं बना सकोगे। देखो, मैंने एक महीने में पचीस हजार कमा लिये....I मेरी मानो तो चलो मेरे साथ.... खेलो मजे से जुआ.... भाग्य चमकेगा....।' ऐसी बातें करने वाले मिल जायेंगे उस समय सावधान रहना! लालच में फँसना नहीं । आपका दृढ़ मनोबल होगा तभी बच सकोगे । अल्प प्रयास में लखपति बन जाने की लालच भारी होती है! इस लालच के सामने अड़िग रहने के लिए जीवन में दृढ़ प्रतिज्ञा होनी चाहिए कि 'किसी भी हालत में जुआ नहीं खेलूँगा ।'
यदि कोई जुआ खेलता हो तो शीघ्र वहाँ जाना बंद कर देना। वैसे स्थानों में जाना ही नहीं कि जहाँ जुआ खेला जाता हो। वैसे लोगों के साथ परिचय नहीं रखना कि जो लोग जुआ खेलते हों। मानोगे यह बात ? तन-मन और धन से बरबाद नहीं होना हो तो मानना यह बात ! निर्भयता और निश्चिंतता से जीवन जीना हो तो मानना यह बात ।
परस्त्री - संबंध से सावधान !
तीसरी बात है परस्त्री की । जो परायी स्त्री है, जो आपकी पत्नी नहीं है, उससे राग नहीं करना, उससे स्नेह संबंध नहीं बांधना । बड़ा खतरा है इस मार्ग पर। स्व-स्त्री से आज लोगों को परायी स्त्री ज्यादा अच्छी लगती है! मनुष्य की मनोवृत्तियाँ अत्यंत विकृत बनती जा रही हैं। हालाँकि इस बात में बदली हुई जीवनपद्धति बहुत जिम्मेदार है, फिर भी जिस मनुष्य को आपत्तियों से बचना है, अनेक भयों से बचना है, उस मनुष्य को अपनी जीवनपद्धति को बदलना होगा ।
सभा में से : परायी स्त्री से मित्रता तो हो सकती है न?
महाराजश्री : क्या पुरुष मित्रों का अकाल पड़ गया है ? आपकी स्त्री मित्र नहीं बन सकती है क्या ? ऐसे फँदे में मत फँसना .... अन्यथा घोर संकट में फँस जाओगे । परस्त्री के सामने मत देखो !
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