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प्रवचन-३९ जुआ यानी प्रेम-प्रसन्नता को लगा धुआँ :
यदि आपको संकटों से बचना है तो दूसरी बात है जुआ खेलने की। जुआ नहीं खेलना चाहिए। जुआरी कभी भी प्रसन्नता से जीवन नहीं जी सकता। जुआरी का मन किसी भी धर्म-आराधना में लीन नहीं हो सकता। जुआरी अपने परिवार में प्रायः अप्रिय बनता है। चूंकि वह परिवार के योगक्षेम की चिन्ता नहीं करता है। आप यदि किसी जुआरी को जानते हो तो आपको खयाल होगा कि वह कभी न कभी किसी आफत में फँसा ही होगा। जुआरी चंदूलाल की दास्तान :
हमारे एक दूर के रिश्तेदार थे, उस समय मेरा तो बचपन था, लेकिन मैंने सुना था कि वे जुआ खेलते थे। शुरू-शुरू में उन्होंने कुछ रुपये कमाये थे। घर में जब वे रुपये देते थे घर वाले खुश हो जाते थे....और जुआ खेलने से कोई रोकता नहीं था। गलत रास्ते से रुपये कमाने वाले पति को धनप्रेमी पत्नी कैसे रोक सकती है? इस चन्दूलाल की पत्नी ने चन्दुलाल की पत्नी ने चन्दुलाल को नहीं रोका | चन्दूलाल भी जुआ खेलने का व्यसनी बन गया। जुए खेलने के अड्डे में जाकर रातभर जुआ खेलता था । जुएबाज उसके मित्र बन गये थे। दो-तीन-वर्ष में उसने एक लाख रूपये कमा लिये। उसको यह धंधा अच्छा लगा। हालाँकि कुछ स्वजन-मित्रों ने उसको यह धंधा छोड़ देने
को बहुत समझाया था परन्तु वह कहाँ समझने वाला था? ___ जुआ खेलना भयानक व्यसन है। इस व्यसन का नशा युधिष्ठिर जैसे धर्मात्मा पर भी छा गया था तो फिर चन्दूलाल की क्या हैसियत थी। जब तक जुआरी जीतता रहता हो, आप उसको जुआ नहीं छुड़वा सकोगे | यह भी एक तरह का नशा है। नशे में चकचूर मनुष्य को शब्दों से नहीं समझाया जा सकता, उसको तो डंडे से ही समझाया जा सकता है। नशेबाज को होश में लाने के लिए प्रहार करना पड़ता है। चन्दूलाल पर कुदरत ने प्रहार कर दिया। कलजुग का युधिष्ठिर :
अब चन्दूलाल हारने लगा। ज्यों-ज्यों हारता जाता है त्यों-त्यों दाव बड़ा बड़ा लगाता जाता है। हजारों रूपये हारने लगा। अब उसका स्वभाव भी चिड़चिड़ा बनने लगा। पत्नी को भी मारने-पीटने लगा। स्नेही-स्वजनों के साथ उसके संबंध बिगड़ने लगे| चन्दूलाल को स्नेही-स्वजनों की कोई परवाह नहीं थी। उस को तो जुआ खेलकर लाखों रुपये बना लेने थे। एक दिन
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