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प्रवचन- ३८
१७१
भयभीत बन कर घर में छिपने लगे थे। उसका सारा परिवार भय से व्याकुल
बना रहता था।
अन्याय बदला लेता है :
दूसरों के साथ अन्याय करने वाला निर्भय रह ही नहीं सकता है । अन्याय करने वाले के शत्रु होते ही हैं, कब उन शत्रुओं का हमला आये, पता नहीं ! पता लगने पर भय की सीमा नहीं रहती! ज्यादातर अन्याय करने वाले होते हैं सत्ताधीश और धनवान लोग! सत्ता और धन मनुष्य को प्रायः अभिमानी बना देते हैं। अभिमानी बना सत्ताधीश और धनवान् न्याय-अन्याय का भेद भूल जाता है। ऐसे लोग भ्रमणा में होते हैं कि 'अब हमारी सत्ता शाश्वत् रहेगी, हमारी संपत्ति शाश्वत् रहेगी!' ऐसी भ्रमणा में ये लोग अन्यायपूर्ण व्यवहार करते रहते हैं। गरीबों को सताते रहते हैं । प्रजा का उत्पीड़न करते रहते हैं । परन्तु जब उनकी भ्रमणा टूटती जाती है, सत्ता और संपत्ति चली जाती है..... वे अपने किये हुए अन्यायों की बलि बन जाते हैं ।
कर्म की वसूली बड़ी तगड़ी होती है :
राजा-महाराजाओं ने प्रजा के साथ घोर अन्याय किया तो उन राजाओं की कैसी दुर्दशा हुई ? राज्य तो चले गये, विशेषाधिकार भी चले गये। कई राजा तो बर्बाद हो गये। जमींदारों की वैसी दुर्दशा हुई है। आज जिन-जिन देशों में जुल्मी शासक हैं उनकी भी वैसी ही दुर्दशा होने वाली है । युगान्डा (अफ्रीका) के जुल्मी ईदी अमीन को भागना पड़ा। कितने घोर अत्याचार किये थे उसने ?
समाज में भी जो व्यक्ति अपने समाज के लोगों के साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार करते हैं, एक दिन वह स्वयं संकटों में फँस जाता है । परिवार में जो व्यक्ति अनुचित-अयोग्य व्यवहार करता है वह भी उपद्रवों को आमंत्रण दे देता है। आप किसी से भी अन्याय करोगे तो एक दिन आप पर भी आपत्ति आने वाली ही है, यह बात कान खोलकर सुन लो। इसलिए ज्ञानी पुरुष कहते हैं कि किसी भी जीवात्मा के साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार मत करो। यदि आपको इस मानवजीवन में आत्मशुद्धि का महान् कार्य करना है, आत्म-उत्क्रान्ति के पथ पर चलना है, आत्म के भीतर बज रहा दिव्य संगीत सुनना है....तो व्यवहार मार्ग पर सीधे चलते रहो। किसी के भी साथ दुर्व्यवहार मत करो। ऐसा कोई भी अकार्य मत करो कि जिसके परिणामस्वरूप आपको आफतों के जाल में फँसना पड़े ।
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