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प्रवचन-३८
१६८ मानेगी। बाह्य रूप, बाह्य कलाएँ और बाह्य स्नेहप्रदर्शन से मोहित हो जाने वाले पुरुषों की घोर कदर्थना होती है। ___ एक बार वेश्यागमन करने पर, उस गलत रास्ते से वापस लौटना मुश्किल बन जाता है। उस पुरुष का मन इतना कामासक्त बन जाता है कि उस पर मूढ़ता छा जाती है। वह अपने कुल की, परिवार की इज्जत का विचार नहीं कर सकता। वह अपने घोर पतन की खाई को देख नहीं सकता। वह अपनी आत्मा की दुर्दशा का विचार नहीं कर सकता | वह तो डूब जाता है विषयवासना के समुद्र में। उसके जीवन में धर्मपुरुषार्थ को स्थान नहीं रहता। ___ वेश्या हो या परस्त्री हो, उस तरफ देखो भी मत | उनके विषय में सोचो भी मत । राग से देखोगे तो मन से सोचोगे ही। इसलिए उनकी तरफ देखना ही नहीं। कामवासना पर संयम रखो । स्व-पत्नी में संतोष रखो। मानवजीवन को धर्मपुरुषार्थ से सफल बनाने का दृढ़ संकल्प करो। यदि आपको अपनी कामवासना पर संयम रखना है तो :
१. परस्त्री का परिचय मत करो। २. सिनेमा-नाटक मत देखो। ३. वीभत्स साहित्य मत पढ़ो। ४. गंदे चित्र मत देखो। ५. ज्यादा पौष्टिक भोजन मत करो। ६. रात्रिभोजन का त्याग करो। ७. साधु-संतों का समागम रखो। ८. ब्रह्मचर्य की भावना को पुष्ट करो। ९. स्त्रीविषयक चर्चाएँ मत करो।
इतनी सावधानियाँ अवश्य रखो। परमात्मा से हमेशा प्रार्थना करो कि 'हे भगवंत! मुझे अविकारी बना दो। मेरे मन के विकारों को नष्ट कर दो। मुझे आत्मा का शुद्ध स्वरूप प्रदान करो।' ___ शादी-विवाह के औचित्य के विषय में पर्याप्त विवेचन किया है। आप इन बातों पर चिंतन-मनन करें, जो भी नये प्रश्न पैदा हों, आप मेरे पास आकर समाधान कर सकते हैं। इस विषय पर आज विवेचन समाप्त करता हूँ|
आज बस, इतना ही।
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