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प्रवचन-३७
१५९ त्यों-त्यों दुःख कम होता गया। सेठ-सेठानी स्वस्थ हुए तब उन्होंने पुत्रवधू का विचार किया। पुत्रवधू का यौवनकाल था । जवानी में वैधव्य आया था.... वैधव्य की कठोर वेदना उसको सहनी थी। उन्होंने उस पुत्रवधू पर पुत्र जैसा ही प्रेम रखा । उसको अच्छी सुख-सुविधा देने लगे। सेठानी तो पुत्रवधू के पास घर का एक भी काम नहीं करवाती है। जब पुत्रवधू काम करने आती है तब सेठानी कहती है - 'बेटी, तुम्हें कोई काम नहीं करना है, मैं कर लूँगी सारा काम | और घर में नौकर भी तो हैं ही, तुम तो आनन्द से रहो, किसी बात की कमी हो तो मुझे कहो!'
पुत्रवधू अपने कमरे में बैठी रहती है। दिन और रात वह क्या काम करे? जब कमरे में बैठे-बैठे ऊब जाती है तब हवेली के झरोखे में जाकर खड़ी रहती है। हवेली के आगे राजमार्ग था। राजमार्ग से अनेक स्त्री-पुरुष गुजरते रहते हैं.... रास्ते पर अनेक घटनाएँ भी बनती रहती हैं, वह सब देखती रहती है पुत्रवधू और अपने मन को बहलाती रहती है। फालतू मन खतरनाक है :
एक दिन रास्ते पर से गुजरते एक युवक ने झरोखे में खड़ी उस पुत्रवधू को देखा, पुत्रवधू ने भी उस युवक को देखा, दोनों की आँखें मिलीं, परन्तु उस दिन तो पुत्रवधू तुरन्त ही अपने कमरे में चली गई। दूसरे दिन भी झरोखें से पुत्रवधू ने उस युवक को देखा, युवक के मुंह पर मुस्कराहट छा गई, पुत्रवधू भी मुस्करा गई और अपने कमरे में चली गई...। अब तो प्रतिदिन वे दोनों इस प्रकार मिलते रहे | पुत्रवधू के मन पर वह युवक छा गया.... दिन-रात उसके विचारों में डूबी रहती है। दूसरा कोई गृहकार्य तो उसके पास था नहीं। स्वाध्याय, अध्ययन, परमात्मभक्ति जैसी कोई धर्मप्रवृत्ति भी उसके पास नहीं थी। परिणाम यह आया कि पुत्रवधू उस युवक के प्रति आकर्षित हो गई। वासना से व्याकुल बन गई। एक दिन अपनी दासी से कहा - 'मैं तुझे कल सुबह एक युवक बताऊँगी, शाम को अंधेरा होने पर उस युवक को मेरे पास ले आना।' दासी ने हाँ भर ली। दूसरे दिन पुत्रवधू ने दासी को झरोखों से उस युवक की पहचान करा दी।
दासी उस परिवार की वफादार दासी थी। उसने सोचा कि 'मुझे यह बात सेठ को बता देनी चाहिए, अन्यथा इस बहू का जीवन नष्ट हो जायेगा।' उसने सेठ को सारी बात बता दी। सेठ बड़े समझदार थे। उन्होंने सारी परिस्थिति का शीघ्रता से अध्ययन कर लिया। पुत्रवधू की शीलरक्षा का उपाय भी सोच
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