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प्रवचन-३७
१५३ सफल हो सकता है, अन्यथा नहीं। भिन्न विचारवाले पति-पत्नी के लड़केलड़कियों का अच्छा जीवननिर्माण नहीं हो पाता है। माता की शिक्षा अलग, पिता की राय अलग... बच्चे द्विधा में पड़ जाते हैं। दो में से किसी की बात वे मानते नहीं हैं.... अपने मनमाने ढंग से जीवन जीते हैं।
यदि परिवार को सानुकूल बनाने का प्रयत्न करोगे तो लाभ आपको ही है। जिस परिवार में स्त्री और सन्तान सुशील, विनयी और विवेकी होती है उस परिवार में सभी लोग प्रसन्नचित्त रहते हैं। सभी के चित्त प्रसन्न रहने से, सभी की राय एक होने से, धर्म की आराधना-उपासना में वे प्रगति करते रहते हैं | धर्माराधना में वे अपूर्व आनन्द का अनुभव करते हैं। कोई अत्यंत तनाव नहींकोई दुराग्रही नहीं, कोई शंका-कुशंका नहीं। एक आदर्श जैन-परिवार : __ ऐसा एक परिवार मेरे देखने में आया। दूसरे भी ऐसे परिवार होंगे। यह तो जो मेरे परिचय में आया उस परिवार की बात करता हूँ। पति-पत्नी और दो संतान - एक लड़का और एक लड़की। दो संतान प्राप्त होने पर पति-पत्नी ने संपूर्ण ब्रह्मचर्य-व्रत धारण कर लिया था। पति 'ग्रेज्युएट' है यानी सुशिक्षित है। लड़के-लड़की को भी पढ़ाया, दोनों ग्रेज्युएट हुए....परन्तु कालेज का एक भी दूषण उनमें नहीं आया। जब भी मैंने इस परिवार को देखा है प्रसन्न और प्रफुल्लित देखा है। कभी किसी के मुख पर गुस्सा या नाराजी तो देखी ही नहीं। कभी न झगड़ा, न मनमुटाव | सबकी अपनी अपनी धर्माराधना चलती रहती है। मैंने उस परिवार को श्रद्धावान्, ज्ञानवान् और सुशील पाया।
इससे विपरीत परिवारों की तो कोई सीमा ही नहीं है। वास्तव में देखा जाय तो माता-पिता का लक्ष्य ही नहीं रहा कि परिवार सदाचारी और प्रसन्नचित्त बना रहे। पिता श्रीमन्त बनने की तृष्णा में दौड़ रहा है और माता अपनी साज-सज्जा, मौजमजा और सामाजिक व्यवहारों में उलझी हुई है। समाज में बड़े बनने की, बड़े दिखने की लालसा बढ़ी हुई है। ऐसी जीवनपद्धति में शान्ति, स्वस्थता और प्रसन्नता कहाँ से आयेगी? स्थिर चित्त-धर्माराधना कैसे हो सकती है? ___ शादी की सफलता के विषय में अपनी बात चल रही है। अच्छी पत्नी और अच्छी सन्तान होने पर चित्तप्रसन्नता प्राप्त होती है। घर के सभी गृहस्थोचित कार्य सुचारू रूप से संपन्न होते हैं। घर की व्यवस्था बनी रहती है। भोजनादि समय पर होता है| घर स्वच्छ रहता है... यह भी शादी का एक फल है न?
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