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प्रवचन- ३७
१५५
मनुष्य को कर्तव्य-विमुख बना दिया है । जीवन - व्यवहार में बहुत-सी अशुद्धियाँ
प्रविष्ट हो गई हैं।
स्त्री का गौरव कैसे बढ़ेगा?
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शादी का एक महत्त्वपूर्ण फल बताया है अतिथिसत्कार का ! स्नेही - संबंधी का सत्कार । पुरुष जब अपने व्यवसाय के लिए बाहर होता है, घर पर कोई साधु-संत पधार जाय तो घर की स्त्री उनका उचित सत्कार करती है। स्नेहीसंबंधी आ जाय तो उनका सत्कार करती है। जिस घर में इस प्रकार आगंतुकों का आदर-सत्कार होता है उस घर की शोभा बढ़ती है, प्रतिष्ठा बढ़ती है। आगंतुकों का मधुर शब्दों से सत्कार करना उचित आसन प्रदान करना, भोजनादि से सेवा करना, सभ्यता से बात करना .... वगैरह उचित व्यवहार के पालन से स्त्री का भी गौरव बढ़ता है ।
देवी अनुपमा की उदारता :
जब गुजरात पर राजा वीरधवल राज्य करता था, उसके महामंत्री थे वस्तुपाल और सेनापति थे तेजपाल । वस्तुपाल - तेजपाल गुजरात के इतिहास के अमर पात्र हैं। तेजपाल की पत्नी थी अनुपमादेवी । जिसकी कोई उपमा नहीं मिले वैसी थी वह अनुपमादेवी ।
एक दिन एक मुनिराज गौचरी लेने तेजपाल की हवेली में पधारे। घर में वस्तुपाल-तेजपाल नहीं थे, अनुपमादेवी थी । मुनिराज का स्वागत किया और भिक्षा स्वयं देने लगी। मुनिराज के पात्र में घी डालते - डालते पात्र बाहर से घीवाला हो गया। अनुपमादेवी अपनी साड़ी से पात्र को पोंछने लगी तब मुनिराज ने कहा : 'देवी, दूसरे वस्त्र से साफ करो, यह साड़ी बिगड़ेगी ।' तब अनुपमादेवी ने कहा : 'गुरुदेव! ऐसा मेरा सौभाग्य कहाँ कि मुनिराज के पात्र का मेरी साड़ी को स्पर्श मिले! साड़ी तो दूसरी भी मिलेगी। जब मेरे सर पर परमात्मा जिनेश्वरदेव हैं, आप जैसे सद्गुरुदेव हैं, महाराजा वीरधवल जैसे मालिक हैं, फिर मुझे किस बात की कमी है?' मुनिराज तो 'धर्मलाभ' का आशीर्वाद देकर पधार गये, परन्तु वहाँ एक दूसरी ही घटना घटी थी ! राजा वीरधवल भेष-परिवर्तन कर तेजपाल की हवेली के द्वार पर खड़ा था, वस्तुपालतेजपाल के विरोधियों ने राजा के कानों में कुछ गलत बातें भरी थीं, राजा स्वयं देखने आया था! उसने द्वार पर खड़े खड़े अनुपमादेवी के शब्द सुने...... वह स्तब्ध रह गया! जिस घर की स्त्री के हृदय में मेरे प्रति इतनी श्रद्धा.....
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